Book Title: Divya Jivan Vijay Vallabhsuriji
Author(s): Jawaharchandra Patni
Publisher: Vijay Vallabhsuriji Janmashatabdi Samiti

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Page 82
________________ दिव्य जीवन ६७ हैं। इस प्रकार गुरुदेवने महात्माओंको समाजसेवा द्वारा विश्वमें आलोक फैलानेका कर्त्तव्य सुझाया । मानवकी उदासी मिटानके लिए सेवाके शीतल जलकी आवश्यकता है | भटकन वाले दिशाहीन ( पूजा श्रद्धा विहीन) व्यक्तिको मार्ग कौन दिखाएगा ? क्या महात्माओं का यह उत्तरदायित्व नहीं है ? गुरुदेवने मानवताकी ज्योति जलाने के लिए, प्रेमका प्रकाश छिटकानेके लिए तथा स्वार्थका अंधकार मिटाने के लिए सेवाधर्मसे अपने जीवनका शृंगार किया था । ४. साहित्य -- साहित्यके लेखन और प्रकाशनको गुरुदेवने महत्त्वपूर्ण माना था । 'साहित्य प्रकाशका रूपान्तर है' । साहित्यसे प्रकाश फैलता है । मानवमनमें अच्छे विचारोंकी उत्पत्ति साहित्य द्वारा होती है। यदि महान् दार्शनिकों एवं साहित्यकारोंके विचार हमें पुस्तकोंमें पढ़ने को नहीं मिलते, यदि उज्ज्वल और पवित्र जीवनियां हमें प्राप्त नहीं होती, तो हम न जाने कहाँ पर अन्धकारमें भटकते । गुरुदेव स्वयं उच्च कोटिके साहित्यकार थे । उनका कवि-रूप कोमल एवं दिव्य था, उनका निबन्धकारका व्यक्तित्व वैज्ञानिक एवं स्वच्छ था । साफ़-सुथरी शैलीमें आत्माकी बात कहनेवाले बिरले ही होते हैं । कवि अथवा साहित्यकार में दिव्य प्रतिभा होती है । गुरुदेवमें वह प्रतिभा थी । उनका साहित्य मानवताके प्रकाशसे प्रकाशित है । परन्तु उस प्रकाशको देखनेकी इच्छा रखनवाले बिरले ही हैं । गुरुदेवने नवोदित साहित्यकारोंको प्रोत्साहित किया। उन्होंने उनको स्नेह और सम्मान दिया । उनके दिव्य गुरु श्रीमद् आत्मारामजी महाराज साहबने विद्वानोंको स्नहसे अपनी ओर आकर्षित किया था और कितने ही साहित्यकार उनके चरणों में बैठकर पावन प्रेरणाका शीतल इक्षुरस पी कर स्फूर्ति एवं उत्साह प्राप्त करते थे। गुरुदेव स्वयं साहित्यकारोंको अपने स्नेहके स्पर्शसे अपनी ओर खींच लेते थे । वे साहित्यके मर्मज्ञ थे, क्योंकि वे साहित्यको प्रकाशका ही एक रूप मानते थे । 'साहित्यकार यदि तृप्त होगा, सम्मानित होगा, तो वह उत्तम एवं सत्साहित्यरचनासे समाज और व्यक्तिको बदल देगा ।" यह गुरुदेव ने कहा. 1 "L wxxxcomp " गुरुदेवने ईश्वरसेवा, समाजसेवा तथा साहित्यसेवाके लिए अपने जीवनको न्योछावर कर दिया। गुरुदेवका मिशन था - साहित्यका व्यापक रूपसे प्रचार और प्रसार करना । 'जनता अच्छी पुस्तकें पढ़ें, ग्राम ग्राममें पुस्तकालयोंकी स्थापना हो, सत्साहित्यनिर्माण हेतु लेखक आगे बढ़े। " येथे गुरुदेव के उद्गार | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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