Book Title: Divya Jivan Vijay Vallabhsuriji
Author(s): Jawaharchandra Patni
Publisher: Vijay Vallabhsuriji Janmashatabdi Samiti

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Page 64
________________ दिव्य जीवन अपने जन सब तुमने तारे मौन किया प्रभु सेवक तारे ऐसा नाथ न चाहिये आप विचारना रे । - इस आत्मनिवेदन में स्वामीके प्रति सेवककी अपार श्रद्धा झलकती है । भक्तको ज्ञात हुआ कि देह-देवालय में ही स्वामी पधारेंगे। शुद्ध और पवित्र मन प्रभुका सिंहासन है : में कामी प्रभु तुम निष्कामी । कामना मुज तुजमें जगस्वामी करो अकाम वंछित दातार । - स्वामीके प्रति भक्ति से भक्तहृदय निष्कामी एवं पवित्र बन सकेगा । कविने करुणाघनका रूप इस प्रकार बतलाया है । राम रमे निज रूपमें रहम करे सो रहीम । --- - प्रभु दयाके रूपमें रमता है। जहां दया है, रहम है, वहां राम, रहीम, कृष्ण, करीम निवास करते हैं । रिये : इस पंक्ति अनुप्रास अलंकारका कैसा सरस प्रयोग हुआ है ! कवि वल्लभने ' विविध पूजा संग्रह ' में मानस - रंजिनी काव्यकलाका परिचय दिया है | विविध राग-रागिनियोंसे गीतों में संगीतात्मकता आ गई हैं,। ललित कलाओंम संगीतकी मधुरता श्रवणपुटोंमें सुधा घोलती है, हृदय - वीणाके तारोंको झंकृत कर देती है तथा उससे रोम रोम पुलकमें नाचने लगते हैं । बात्रिोंकी ध्वनि भी इन गीतोंमें सुनाई देती है। दि. -४ त्रों त्रों त्रिक त्रिक वीणा बाजे, धौं धौं मप धुन ढक्कारी, दगड दडं दगड दडं दुर्बुभि गाजे, ता यह ता थेई जय जय कारी । - नादसौन्दर्यका कैसा सरस नमूना है यह ! ऐसा लगता है कि संगीत - मंडली में हम बैठे बैठे विविध वाद्य यंत्रोंकी संगीतध्वनियोंका रसास्वादन कर रहे हों । गीतोंमें सजीवता एवं चित्रोपमता देखते ही बनती है । ४९ सच्चिदानन्द हृदयाकाशमें कैसे दिखाई देते हैं. -- तुम चिदघन चंद आनंद नाथ । Jain Education International For Private & Personal Use Only - एक रम्य रूप निहा www.jainelibrary.org

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