Book Title: Divya Jivan Vijay Vallabhsuriji
Author(s): Jawaharchandra Patni
Publisher: Vijay Vallabhsuriji Janmashatabdi Samiti
View full book text
________________
दिव्य जीवन दुनियादारीके सब काम तो करते ही है, लेकिन दिखावेके लिये थोडासा दान नहीं देंगे, कुछ व्रत नहीं लेंगे तो लोग अच्छा नहीं कहेंगे।" कैसी मीठी चुटकी भरी है इन शब्दोंमें !
पुण्य और पापकी व्याख्या थोड़ेसे शब्दोंमें कितनी स्पष्ट बन पड़ी है : “जो शुभ कार्यके जरिये आत्माको पावन करता है वह पुण्य है और जो अशुभ कार्योंके द्वारा आत्माको नीचे गिरा देता है, वह पाप है।"
'व्यसनोंसे राष्ट्रको बचाइये' शीर्षक भाषणमें गुरुदेवका देशप्रेम झलकता है : “शत्रुराष्ट्रोंकी अपेक्षा ये व्यसनरूपी दुश्मन अधिक जबर्दस्त है। जुआ, चोरी, मांसाहार, मद्य, वेश्यागमन, परस्त्रीगमन और शिकार --ये सप्त व्यसन मनुष्यको पतनके गर्तमें गिरा देते हैं।"
गुरुदेवकी तीखी एवं चुभती शैलीका एक उदाहरण प्रस्तुत है : “व्यसन और मृत्यु दोनों कष्टकर है, लेकिन व्यसन मृत्युसे भी बढ़कर कष्टकर है।"
· गुरुदेवको शैलीकी विशेषता यह है कि वे बीच बीचमें कथा, संस्मरण एवं रोचक प्रसंगोंका उल्लेख भी करते हैं। धूम्रपानके विषयमें गुरुदेवने कच्छके एक युवककी कथा कही है :
___ “कच्छके एक युवकको बीड़ी पीनेका व्यसन लग गया था। अत्यधिक धूम्रपानसे उसके फेफड़े खराब हो गये, खांसी होने लगी। उसे डाक्टरको दिखाया गया। डाक्टरने उसके शरीरकी जांच करके कहा-- तुम्हारे फेफड़े खराब हो गये हैं। तुम्हें टी० बी० (क्षय)की बीमारी हो गई है। धूम्रपानकी आदतने उसे इतना जर्जर बना दिया कि दवाका उसके शरीर पर कोई असर न हुआ। आखिर एक दिन वह युवक इस संसारसे चल बसा। बीड़ीका व्यसन उसके दुख व मरणका कारण बना।" ____ गुरुदेवकी कथात्मक शैलोमें सजीवता है। गुरुदेवने विद्यार्थियोंकी एक सभामें सिगरेटको मृत्युकी बांसुरी कहा था।
गुरुदेव कहते हैं : “हमारे राष्ट्रका उत्थान सादे जीवन और उच्च विचारसे हुआ था, लेकिन अब अनेक व्यसनोंमें फंस जानेके कारण विलासिता, आलस्य, दरिद्रता, फैशन और चरित्रहीनता आदि बुराइयोंके जड़ जमानेसे पतन हो रहा है।"
गुरुदेवके प्रवचनमें एक सरस एवं प्राणवान साहित्यकारकी सशक्त भाषाके दर्शन होते हैं । वल्लभप्रवचन' प्रथम एवं द्वितीय भागोंके निबन्धों
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90