Book Title: Divya Jivan Vijay Vallabhsuriji
Author(s): Jawaharchandra Patni
Publisher: Vijay Vallabhsuriji Janmashatabdi Samiti

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Page 45
________________ ३० दिव्य जीवन - गुरुदेवने कहा था : “नैतिक दृष्टिके अतिरिक्त स्वास्थ्य एवं आर्थिक दृष्टिसे भी मांसाहार अनुपयुक्त एवं हानिकारक है। शाकाहार मानवविकासकी कुंजी है। इसका प्रचलन प्राचीन कालसे है। आचार्यदेवके शाकाहार विषयक भाषणोंसे प्रभावित होकर अनेक भाग्यशालियोंने मांसभोजनको त्याग दिया था। - वह दिव्य प्रकाश मैं अपनेको महान बनाता जाऊं, यह मेरी इच्छा है। मैं तुम्हारे प्रकाशको अपनी रंगीन छायाके रंगसे रंग दूंगा। - गीतांजलि आचार्यदेवकी समभावपूर्ण दृष्टिने सबके मनको जीत लिया था। संवत् १९९८में सियालकोटमें कृष्ण जन्माष्टमीका उत्सव बड़े उल्लासके साथ मनाया गया। हिन्दू मंदिरमें विशाल सभाका आयोजन किया गया, जिसमें जनताने बहुत संख्यामें भाग लिया। आचार्यदेवने कृष्ण भगवान् पर अत्यन्त ही सुन्दर एवं प्रभावशाली भाषण दिया। कृष्णके कर्मयोग पर गुरुदेवका भाषण सुनकर जनता गद्गद् हो गई। लोगोंने कहा : “ये महात्मा कितने महान् हैं ! ये सब धर्मोंको न केवल आदरकी दृष्टिसे देखते हैं, अपितु उनका विशेष ध्यान भी रखते हैं।" ___ एकने कहा : गुरुजीने कर्मकी कितनी अच्छी व्याख्या की है ! अब तक मैं तो अन्धकारमें ही था। अच्छे कर्मोंके द्वारा मनुष्य' महान् बन सकता है। गुरुजीने कहा है कि "मनुष्यको चाहिये कि वह अपना उद्धार आप ही करे। वह अपनी अवनति आप ही न करे।' क्योंकि प्रत्येक मनुष्य स्वयं अपना बंधु (हितकारी) है और स्वयं अपना नाशकर्ता है। धम्मपदमें भी १. उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत् । आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः ।।-गीता ६,५ 2. Each hath such lordship as the loftiest ones: Nay, for with powers above, around, below, As with all flesh and whatsoever lives, Act maketh joy and woe. - The Light of asia: ___Edmin Arnold. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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