Book Title: Divya Jivan Vijay Vallabhsuriji
Author(s): Jawaharchandra Patni
Publisher: Vijay Vallabhsuriji Janmashatabdi Samiti

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Page 42
________________ दिव्य जीवन संखतराकी एक विशेष घटनाका यहां उल्लेख करता हूं। जहां जहां आचार्यदेव जाते थे, वहां वहां ऐसा वातावरण हो जाता था कि पारस्परिक वैमनस्य समाप्त हो जाता था। परिवारका कलह भी मिट जाता था। संखतराके लाला अमीचन्द धर्मात्मा व्यक्ति थे। वे गुरुदेवके भक्त थे। वे परोपकारी जीव थे। उनकी मृत्युके बाद उनके दो पुत्र देवराज और ज्ञानचन्द आपसमें झगड़ने लगे। आचार्यदेवको किसीने विनती की कि यदि दोनों भाई सुखशान्तिसे रहेंगे तो परिवारमें शान्ति रहेगी और वे सामाजिक कार्योंमें भी रस लेंगे। ___आचार्यदेवने दोनों भाइयोंको दुपहरको अपने पास बुलाया। उनका व्यक्तिगत कोमल स्पर्श, पत्थरहृदयको भी पिघला सकने में सक्षम था। दोनों भाइयोंने गुरुदेवके चरणोंमें वन्दना की और विनम्रतासे पूछा : "गुरुदेव, आपने हमें क्यों याद किया है ?" गुरुदेव : “तुमसे एक जरूरी काम कराना है, इसीलिये तुम्हें दुपहरको तकलीफ दी है।" वे बोले : “ऐसा न कहिये । हम तो आपके सेवक हैं। हमारा अहोभाग्य है कि आप हमारे गांवमें पधारे हैं और हमें खास तौरसे याद कर भाग्यशाली बनाया है।" गुरुदेवने कहा : “यदि बुरा न मानें तो एक बात कहूं।" वे बोले : “फरमाइये।" गुरुदेव बोले : “तुम स्व० लाला अमीचन्दके पुत्र हो। वे जब जीवित थे, तब उन्होंने अनेक बिछुड़े भाइयोंको मिलाया था, मगर आज स्वर्गमें बैठे हुए उनको यह देखकर कितना दुःख होता होगा कि उनके दो पुत्र एकदूसरेसे बिछुड़ रहे हैं। मेरी यही इच्छा है कि आप एकदूसरेके साथ मिलकर रहेंगे।" . दोनों स्तब्ध हो गये । कुछ देरके बाद दोनोंने एकदूसरेकी तरफ देखा। दोनोंकी आंखोंसे अश्रुमोती टपकने लगे। दोनोंने एकसाथ गुरुदेव कहकर उनके दिव्य चरण पकड़ लिये। उन्होंने अश्रुजलसे गुरुदेवके चरणोंका अभिषेक किया। आचार्य वल्लभका शील जनमनके अन्तरतमको छू लेता था। कोमलता, विनम्रता, सदाशयता, समभावना, तपनिष्ठता एवं ज्ञानविमा रूपी छह उत्तम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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