Book Title: Dhyanashatak Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Kanhaiyalal Lodha, Sushma Singhvi Publisher: Prakrit Bharti Academy View full book textPage 6
________________ अनुक्रमणिका गा. सं. पृ. सं. विवरण प्रकाशकीय भूमिका 11 प्रस्तावना 25 ध्यानशतक 57 57 58 59 4 60 61 62 64 मङ्गलाचरण ध्यान का लक्षण ध्यान का काल तथा स्वामी ध्यान के भेदः उद्देश्य एवं फल आर्त ध्यान के भेदः (1) अनिष्ट संयोग (2) आतुर चिन्ता (3) इष्ट वियोग (4) निदान चिन्तन आर्त ध्यान का कारण और परिणाम मुनि के आर्त ध्यान की सम्भावना एंव निराकरण आर्त ध्यान संसार का कारण आर्त ध्यानी की लेश्याएँ आर्त ध्यानी के परिचायक लिङ्ग आर्त ध्यानी के परिचायक लिङ्ग गुणस्थान की दृष्टि से आर्त ध्यानी रौद्र ध्यान के भेदः (1) हिंसानुबन्धी (2) मृषानुबन्धी (3) स्तेयानुबन्धी (4) विषयसंरक्षणनुबन्धी 11-12 65 66 14 66 15 67 16-17 68 18 70 70 72 21 73 2 14 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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