Book Title: Dhaval Jaydhaval Sara Author(s): Jawaharlal Shastri Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan View full book textPage 6
________________ संयोजकीय यह प्रसन्नता का विषय है कि श्री गणेश वर्णी दि ० जैन संस्थान की ओर से सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री स्मृति व्याख्यानमाला के अन्तर्गत आयोजित व्याख्यान अब सार्वजनीन उपयोगिता की दृष्टि से “धवलजय धवल सार” नाम से पुस्तकाकार रूप में आपके सम्मुख हैं। प्रस्तुत व्याख्यान जैनधर्म और सिद्धान्त तथा करणानुयोग के विशिष्ट विद्वान् पं० जवाहरलाल जी, भीण्डर ( उदयपुर - राजस्थान) ने संस्थान भवन में दिनांक २९ से ३ अगस्त १९९३ को प्रस्तुत किये थे । इस प्रथम व्याख्यानमाला का उद्घाटन सुप्रसिद्ध विद्वान् पद्मभूषण पं० बलदेव उपाध्याय ने किया था । वैदिक परम्परा के इन्हीं उत्कृष्ट विद्वान् ने इस बात को अपने उद्घाटन भाषण में खुलकर कहा था कि इस देश का भारत नाम प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र भरत के नाम से ही प्रचलित हुआ । साथ ही “भारत” नाम के पूर्व इस देश का सर्व प्राचीन नाम " अजनाभवर्ष ” भी ऋषभदेव के पिता के नाम पर प्रचलित था, जिसका उल्लेख प्राचीन शास्त्रों में मिलता है । प्रस्तुत व्याख्यानों में यद्यपि हिमालय जैसे विशाल सिद्धान्त ग्रन्थों के सभी विषय तो नहीं आ सके किन्तु उनके कुछ प्रमुख विषयों को विद्वान् वक्ता ने जिस प्रामाणिकता के साथ प्रस्तुत किया है, इससे उनके इन सिद्धान्त विषयों के ज्ञान की गहनता और सूक्ष्मता का पता चलता है । निरन्तर अस्वस्थता और कृशकाय आदि बाधाओं के बावजूद उनके अन्दर क्षयोपशम के साथ ही अगाध दृढ़ता और श्रद्धा विद्यमान है। श्रद्धेय पं० फूलचन्द्र जी शास्त्री से भी आपको इन सिद्धान्त ग्रन्थों का साक्षात् अध्ययन करने और स्वाध्याय के दौरान समागत शंकाओं का समाधान प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है । प्रस्तुत व्याख्यानों का संबंध मूलतः शौरसेनी प्राकृत भाषा के श्रेष्ठ मूल जैनागम से है । इनमें प्रथम शती के आचार्य पुष्पदन्त-भूतबलि द्वारा रचित " षट्खण्डागम" पर आचार्य वीरसेन स्वामी (नवीं शती का पूर्वार्द्ध) ने मणिप्रबाल न्याय से प्राकृत संस्कृत मिश्रित भाषा में बहत्तर हजार श्लोक प्रमाण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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