Book Title: Dhammapada 11
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna
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'मैं इन धम्मपद के वचनों को तराश रहा हूं। तुम्हारे योग्य बना रहा हूं। ढाई हजार
साल.का खयाल तो करो। ढाई हजार साल में बहुत कुछ बदला है। जब बुद्ध बोले थे, तब फ्रायड नहीं हुआ था; मार्क्स नहीं हुआ था; आइंस्टीन नहीं हुआ था। अब फ्रायड हो चुका है, मार्क्स हो चुका है, आइंस्टीन हो चुका है। इनको कहीं इंतजाम देना पड़ेगा; इनको जगह देनी पड़ेगी; नहीं तो तुम बचकाने मालूम पड़ोगे। ___ 'अगर तुम्हारी कहानी वैसी की वैसी रहे, जैसी फ्रायड के पहले थी, तो फिर फ्रायड का क्या करोगे? फ्रायड ने जो अंतर्दृष्टि दी, उसे समाविष्ट कहां करोगे? और अगर समाविष्ट नहीं की तो तुम्हारी कहानी गलत हो जाएगी। क्योंकि फ्रायड ने जो अंतर्दृष्टि दी है, उसे समाविष्ट करना ही होगा। और मार्क्स ने जो भाव दिया है, उसे समाविष्ट करना ही होगा। आइंस्टीन ने जो नए द्वार खोले हैं, वे तुम्हारी कहानियों में भी खुलने चाहिए, नहीं तो तुम्हारी कहानियां पिछड़ जाएंगी। _ 'मैं ढाई हजार साल में जो हुआ है, उसे आंख से ओझल नहीं होने देता। मुझे बुद्ध की कहानी से अपूर्व प्रेम है। इसीलिए जो ढाई हजार साल में हुआ है, उसे मैं समाविष्ट करता हूं। जिस ढंग से मैं कह रहा हूं, उसमें मार्क्स भी भूल नहीं निकाल सकेगा; और फ्रायड भी नहीं निकाल सकेगा; और आइंस्टीन भी नहीं निकाल सकेगा। तो कहानी समसामयिक हो गयी। उसकी भाव-भंगिमा बदल गयी, उसका रूप बदल गया। उसने नयी देह ले ली। उसका पुनर्जन्म हुआ।
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