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बुद्धपुरुष स्वयं प्रमाण है ईश्वर का
पास बड़ी भीड़ थी। और लोग बड़ी प्रशंसा कर रहे थे। और तब पिकासो आया और उसने आकर चित्र को सीधा टांगा, वह गलती से उलटा टंगा था। लोग उसकी प्रशंसा कर रहे थे। उनमें से किसी को यह भी पता न चला कि वह उलटा टंगा है। पिकासो के चित्र उलटे यां सीधे, फर्क करना मुश्किल है। पिकासो भी कैसे करता था, यह भी मुश्किल है। जैसे किसी पागल ने रंग डाले हों। ___ कहा जाता है, एक दफे एक अमरीकी करोड़पति ने पिकासो से दो चित्र मांगे। कितना ही मूल्य देने को वह तैयार था। उसने नया भवन बनाया था, दो चित्रों की जरूरत थी। पिकासो के पास एक ही चित्र तैयार था। वह भीतर गया, उसने कैंची से उसके दो टुकड़े कर दिए। उसने लाकर दोनों चित्र दे दिए, और दो चित्र के दाम ले लिए।
पक्का करना मुश्किल है। पिकासो चार भी कर देता तो भी पता नहीं चलता।
पिकासो के चित्रों में मनुष्य की पूरी विक्षिप्तता प्रगट हुई है। और अगर उसके चित्रों का इतना समादर हुआ, तो उसका कुल कारण इतना था कि मनुष्य के मन की जैसी दशा है, उसका ठीक-ठीक चित्रण उसके चित्रों में हो गया है। पिकासो के चित्रों को अगर थोड़ी देर गौर से देखते रहो तो तुम परेशान होने लगोगे। और थोड़ी देर गौर से देखो, तो तुम घबड़ाने लगोगे। अगर तुम देखते ही रहो रातभर टकटकी लगाकर, सुबह तक पागल हो जाओगे। जैसे किसी ने बेहोशी में, विक्षिप्तता में रंग फेंक दिए हैं। लेकिन यही तुम्हारी जिंदगी है।
बुद्ध कहते हैं, 'पापी अपने मैले कर्मों को देखकर शोक करता है।'
देखता है पीछे तो सिवाय अंधेरे के कुछ भी दिखायी नहीं पड़ता। अंधेरे में अपनी ही विक्षिप्त आवाजें और चीत्कार सुनायी पड़ते हैं। अंधेरे में अपने ही पैरों के पदचिह्न बने दिखायी पड़ते हैं। उनसे ऐसा नहीं लगता कि कोई नाचा हो, उनसे ऐसा लगता है जैसे जंजीरों में बंधा हुआ कोई कैदी गुजरा हो। उन कृत्यों को देखकर ऐसा नहीं लगता कि किसी जीवन में फूल खिले हों। उन्हें देखकर ऐसे ही लगता है कि कोई जीवन अनखिला ही डूब गया है। उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि सुबह हुई ही नहीं और सांझ हो गयी है। सूरज निकला ही नहीं और डूब गया; कली खिली ही नहीं और मुझ गयी। शोक होता है पीछे देखकर। और आगे की आशा बांधे रखता है पापी।
परलोक पापी की आशा है। कोई परलोक नहीं है। जो है, अभी है, यहां है। सब अभी है, यहां है। कोई परलोक नहीं है। परलोक पापी की आशा है; भविष्य पापी की कल्पना है। वर्तमान पुण्यात्मा का जीवन है। भविष्य पापी की आकांक्षा है। भविष्य की आकांक्षा तभी पैदा होती है जब वर्तमान बांझ होता है। जब वर्तमान में कुछ भी नहीं होता, तो आदमी आगे की अपेक्षा करता है। क्योंकि बिना आशा के फिर जीएगा कैसे! अभी तो कुछ भी नहीं है।
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