________________
देखा तो हर मुकाम तेरी रहगुजर में है
हैं। अभी स्वास्थ्य की चर्चा और स्वास्थ्य के गीत तुमसे गाए भी क्या जाएंगे ! तुम बीमार हो ! अभी प्रकाश के लिए तुम कैसे नाचोगे ? अभी अंधेरे के सिवाय तुमने कुछ भी नहीं जाना । इसलिए बुद्ध का इतना प्रभाव पड़ा।
किसी ने पूछा है कि बुद्ध के समय में और भी बड़े चिंतक थे, खुद जैन तीर्थंकर महावीर थे, प्रबुद्ध कात्यायन था, संजय वेलट्ठीपुत्त था, मक्खली गोशाल था, अजित केशकंबल था - बड़े विचारक थे, बड़े उपलब्ध लोग थे – इनका प्रभाव क्यों नहीं पड़ा ?
बुद्ध का जैसा प्रभाव पड़ा किसी का भी न पड़ा। क्या मामला था? उन सबने उपनिषद की भाषा बोली । महावीर पूर्ण की बात करते रहे। पूर्ण की बात पिटी-पिटायी हो चुकी थी। पंडित उसे इतना दोहरा चुका था कि उसमें कुछ भी नया न था । उसका कोई प्रभाव न पड़ा।
A
बुद्ध ने नकार की बात की। पूरा पूरब बुद्ध से छा गया। बुद्ध पूरब के सूर्य हो गए। कुल कारण इतना था कि बुद्ध ने कहने का एक नया ढंग खोजा। और बुद्ध ने जो कहा वह मार्ग पर चलने वाले के लिए उपयुक्त था। मंजिल पर पहुंचकर तो तुम भी नाच लोगे, उपनिषद के रहस्य अपने आप खुल जाएंगे; लेकिन मंजिल पर पहुंचोगे कैसे?
बुद्ध ने केवल मार्ग की बात की। इसलिए वे कहते हैं, दुख है - इसे अनुभव करो । दुख के कारण हैं - इसे खोजो । दुख के कारण को मिटाने के उपाय हैं - मैं तुम्हें बताता हूं। और भरोसा रखो कि दुख के पार एक अवस्था है, क्योंकि मैं वहां पहुंच गया हूं - दुख-निरोध है ।
पूरा कार है । बुद्ध ने अपने को चिकित्सक कहा है कि मैं एक चिकित्सक हूं, एक वैद्य हूं। मैं कोई विचारक नहीं हूं। मैं केवल बीमारी का निदान करता हूं, औषधि बताता हूं। स्वास्थ्य के क्या गीत गाएं तुमसे ! तुम जब स्वस्थ हो जाओगे, खुद ही गा लेना ।
लेकिन मैं दोनों बातें कर रहा हूं; क्योंकि बुद्ध का नकार भी अब उतना ही धूल से भर गया जितना कभी उपनिषद का विधेय था । बौद्ध पंडितों ने उसे भी खराब कर दिया। अब फिर से जरूरत है कि हम उस धूल को झाड़ें। अगर मैं सिर्फ विधेय की बात करूं तो लोग समझेंगे, मैं हिंदू हूं। मैं हिंदू नहीं हूं। अगर मैं सिर्फ नकार की बात करूं तो लोग समझेंगे, मैं बौद्ध हूं। मैं बौद्ध नहीं हूं। मैं सिर्फ मैं ही हूं। इसलिए मैं दोनों की बात कर रहा हूं, ताकि तुम मुझे किसी कोटि में न रख पाओ ।
और पंडित की सबसे बड़ी तकलीफ यही है, तर्क की सबसे बड़ी अड़चन यही है कि जब तक कोटि न बने, तब तक उसकी पकड़ में कोई बात नहीं आती। जैसे ही कोटि बनी कि तर्क हिसाब-किताब जमा लेता है; फिर वह समझ लेता है कि बात क्या है । फिर कोई अड़चन नहीं रह जाती। उसके पास सब जमे हुए लेबिल लगे हैं,
247