Book Title: Dhammapada 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 255
________________ एस धम्मो सनंतनो जोड़े, पर उस युवक ने कहा कि अब इन चरणों को छोड़कर कहीं जाना नहीं है। दरबार मिल गया! ठीक पूछते हो तुम कि 'वरना आदमी थे हम भी कुछ काम के।' जरूर किसी न किसी काम के रहे ही होओगे। संसार में सभी काम के आदमी हैं! और मेरे पास आकर तुम मेरे प्रेम में निकम्मे भी हो गए हो, वह भी सच है। लेकिन, एक ऐसा निकम्मापन भी है जहां राम में प्रवेश शुरू होता है। और ध्यान रखना, काम के आदमी तो भिखारी हैं; भिक्षापात्र ही हाथ में रहता है, कभी भरता नहीं। राम के आदमी ही भर जाते हैं। एक तो ऐसी घड़ी है जब तुम संसार के पीछे भागते रहते हो, दरबारों की तलाश करते हो, और हर जगह ठुकराए जाते हो। फिर एक ऐसी भी घड़ी है कि दरबार तुम्हारी खोज करना शुरू करते हैं, संसार तुम्हारे पीछे आता है और तुम उन्हें ठुकरा देते हो। इसको ही मैं संन्यास कहता हूं। ऐसी घड़ी को उपलब्ध हो जाना, जब साधारण आदमी जिन चीजों को मांगता है, चाहता है, वे तुम्हारे पीछे आने लगें और तुम्हें उनमें कोई रस न रह जाए। संसार पीछे आए और तुम लौटकर भी न देखो! मेरी दृष्टि में तभी तुम असली काम के हुए, जब तुम राम के हुए। लेकिन अगर मन में थोड़ी सी भी दुविधा हो और लगता हो कि यह तो सिर्फ निकम्मे हो गए, राम के तो न हुए, तो लौट जाओ। अभी कुछ बिगड़ा नहीं है। थोड़े-बहुत दिन में वापस संसार के काम के हो जाओगे। अभी बात बिलकुल नहीं बिगड़ गयी है। बिलकुल बिगड़ गयी होती तो यह सवाल ही तुमने न पूछा होता। अभी कुछ न कुछ संसार में पैर है। भूल गए हो, थोड़े दिन में वापस सीख लोगे, पुरानी आदत फिर से सजीव हो जाएगी। या तो लौट जाओ, या पूरे डूब जाओ; बीच में मत खड़े रहो। इश्क करता है तो फिर इश्क की तौहीन न कर या तो बेहोश न हो हो तो न फिर होश में आ या तो डूबना है तो पूरे ही डूब जाओ, यह निकम्मा होने का जो पाठ मैं पढ़ा रहा हं, इसमें फिर पूरी तरह हो जाओ। यही तो अकर्म है, निष्काम है। अगर थोड़ी भी शक-शुबहा मन में हो, थोड़ा भी संदेह हो, तो जितने जल्दी भाग सको भाग जाओ, दूर निकल सको निकल जाओ। क्योंकि ज्यादा देर रुंक गए बुरी संगत में, तो फिर बिलकुल सदा के लिए निकम्मे हो जाओगे। अगर संसार में थोड़ा भी रस है, तो यह बुरी संगत है। अगर संसार में कोई रस न रहा, तो यह सत्संग है। ___ निकम्मे होकर काम के हो जाओगे। बेहोश होकर एक ऐसे होश को उपलब्ध होओगे जिसको फिर कोई बेहोशी छू नहीं सकती। दीवानगी-ए-इश्क के बाद आ ही गया होश और होश भी वो होश कि दीवाना बना दे और होश भी वो होश कि दीवाना बना दे 242

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