Book Title: Dhammapada 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 256
________________ देखा तो हर मुकाम तेरी रहगुजर में है पांचवां प्रश्नः बुद्ध के शून्य में आप प्रेम क्यों कर जोड़ रहे हैं? . अकारण नहीं। यूं ही नहीं। जान बूझकर। क्योंकि प्रेम शून्य का फूल है। बुद्ध के कहने का ढंग नकारात्मक है। जरूरत थी। क्योंकि उपनिषदों ने विधायक की बड़ी बात की, वेद विधायक के गीत गाते रहे। विधायक की चर्चा इतनी हुई कि विधायक शब्द अर्थहीन हो गए। जब किन्हीं शब्दों का बहुत उपयोग किया जाए तो वे व्यर्थ हो जाते हैं। उनकी गहनता, उनकी गहराई नष्ट हो जाती है। उथले ओठों पर शब्द भी उथले हो जाते हैं। उपनिषद की विधायकता, ब्रह्म के गीत, पंडितों के द्वारा सब खराब हो गए। फिर ईश्वर की बात करनी दो कौड़ी की बात मालूम होने लगी। पंडित गांव-गांव गली-गली कूचे-कूचे वही बात कर रहा था। किराए के आदमी ब्रह्मज्ञान फैला रहे थे। उपनिषद जूठे हो गए थे। बुद्ध ने स्वाद बदला इस देश का। उन्होंने नकार की भाषा दी। और बड़ा मजा यह है कि उस नकार की भाषा से उन्होंने बड़ी भारी क्रांति खड़ी कर दी। उस क्रांति में जो गुजर सके वही साबित उन्होंने किया कि उन्होंने उपनिषद समझा था; जो न गुजर सके उन्होंने सिद्ध कर दिया कि वे केवल तोते थे। क्योंकि जिसने उपनिषद को अनुभव से जाना था, वह तो तत्क्षण बुद्ध को समझ गया कि ठीक कह रहे हैं। क्योंकि जिसने उपनिषद के ब्रह्म को जाना—वह जानना तभी हो सकता है जब कोई भीतर के शून्य से गुजरा हो। शून्य के द्वार से जो न गुजरा वह ब्रह्म के मंदिर में कभी पहुंचा नहीं। इसलिए जो पहुंच गया था ब्रह्म के मंदिर में, जो सच में ब्राह्मण हो गया था, वह तो बुद्ध को तत्काल पहचान लिया। बुद्ध के शिष्यों में अधिकतम ब्राह्मण हैं। महाकाश्यप है जिससे झेन का जन्म हुआ। सारिपुत्र है। मोद्गलायन है। सभी ब्राह्मण हैं, महाब्राह्मण हैं। जिन्होंने थोड़ा भी जाना था, वे तो बुद्ध के चरणों में झुक गए। क्योंकि उपनिषद से तो थोड़ा सा स्वाद मिला था। जीवित उपनिषद मौजूद हुआ था, तो उन्होंने उपनिषद की फिकर छोड़ दी। जब जिंदा उपनिषद मौजूद हो, जब ऋषि खुद लौट आए हों बुद्ध में, तो अब कौन किताबों की फिकर करे! .. लेकिन जो पंडित थे, कोरे पंडित थे, पोथी-पंडित थे, कूड़ा-कर्कट इकट्ठा किए थे, उपनिषद कंठस्थ था लेकिन उपनिषद का कोई स्वाद न लगा था, जिनको उपनिषद की शराब का कोई अनुभव न था—उन्होंने कहा, यह बुद्ध तो दुश्मन है! हम तो पूर्ण को मानते हैं, यह शून्य की बात कर रहा है! यह तो नष्ट कर देगा! बुद्ध ने शून्य की बात करके बड़ी गजब की कसौटी पैदा कर दी; चुन लिए 243

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