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देखा तो हर मुकाम तेरी रहगुजर में है
कहा, ठीक है, लेकिन इसकी क्या विशेषता है? किसलिए तुम चाहते हो कि यह दरबार में रहे? तो उसके बाप ने कहा, इसे मैंने सफियों के सत्संग में बड़ा किया है। सूफी-मत के संबंध में जितना बड़ा अब यह जानकार है, दूसरा खोजना मुश्किल है। यह आपका सूफी सलाहकार होगा। रहस्य धर्म का कोई न कोई जानने वाला दरबार में होना चाहिए, नहीं तो दरबार की शोभा नहीं है। सब हैं आपके दरबार में बड़े कवि हैं, बड़े पंडित हैं, बड़े भाषाविद हैं, कोई सूफी नहीं। महमूद ने कहा, ठीक है। एक साल बाद लाओ। ___ एक साल बाद फिर लेकर उपस्थित हुआ। अब तो बाप भी थोड़ा डरने लगा कि यह तो हर बार एक साल...!
महमूद ने कहा कि ऐसा करो, तुम्हारी निष्ठा है, तुम सतत पीछे लगे हो, इसलिए मुझे भी लगता है कुछ करना जरूरी है। तुम हार नहीं गए हो, हताश नहीं हो गए हो! अब ऐसा करो—इस युवक को उसने कहा कि तुम जाओ और किसी सूफी को अपना गुरु मान लो, और किसी सूफी को खोज लो जो तुम्हें अपना शिष्य मानने को तैयार हो। तुम्हारा गुरु मान लेना काफी नहीं है। कोई गुरु तुम्हें शिष्य भी मानने को तैयार हो। फिर सालभर बाद आ जाना।
वह युवक गया। एक गुरु के चरणों में बैठा। सालभर बाद बाप उसको लेने आया। वह गुरु के चरणों में बैठा था, उसने बाप की तरफ देखा ही नहीं। बाप ने उसे हिलाया कि नासमझ, क्या कर रहा है? उठ, साल बीत गया, फिर दरबार चलना है। उसने बाप को कोई जवाब भी न दिया। वह अपने गुरु के पैर दबा रहा था, वह पैर ही दबाता रहा। बाप ने कहा कि व्यर्थ गया; काम से गया, निकम्मा सिद्ध हो गया। इसीलिए हमने तुझे पहले किसी सूफी फकीर के पास नहीं भेजा था। हम सूफी पंडितों के पास भेजते रहे; यह महमूद ने कहां की झंझट बता दी कि कोई गुरु खोज,
और फिर कोई गुरु जो तुझे शिष्य की तरह स्वीकार करे! तू सुनता क्यों नहीं? क्या तू पागल हो गया है, कि बहरा हो गया है? मगर वह युवक चुप ही रहा। साल बीत गंया, बाप दुखी होकर घर लौट गया। महमूद ने पुछवाया कि लड़का आया क्यों नहीं? बाप ने कहा कि व्यर्थ हो गया, निकम्मा साबित हो गया। क्षमा करें, मेरी भूल थी, मैंने पत्थर को हीरा समझा।
लेकिन महमूद ने अपने वजीरों से कहा कि तैयारी की जाए, उस आश्रम में जाना पड़ेगा। महमूद खुद आया। द्वार पर खड़ा हुआ। गुरु लड़के को हाथ से पकड़कर दरवाजे पर लाया और महमूद से उसने कहा कि अब तुम्हारे यह योग्य है; क्योंकि पहले तो यह तुम्हारे पास जाता था, अब तुम इसके पास आए। बाप की दृष्टि में यह निकम्मा हो गया, किसी काम न रहा! अब यह परमात्मा की दुनिया में काम का हो गया है। अगर यह राजी हो, और तुम ले जा सको, तो तुम्हारा दरबार शोभायमान होगा। यह तुम्हारे दरबार की ज्योति हो जाएगा। कहते हैं, महमूद ने बहुत हाथ-पैर
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