Book Title: Dhammapada 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 164
________________ 'आज' के गर्भाशय से 'कल' का जन्म सिगरेट ऐश-ट्रे पर रख दी, और उसने कहा, अब इसको तभी उठाऊंगा जब मेरी ऐसी दशा आ जाए कि मुझे लगे अब मैं गंदी रस्सियां भी पी सकता हूं, नहीं तो नहीं उठाऊंगा। बीस साल बीत गए। वह सिगरेट अपनी टेबल पर ही रखे रहा। लोग उससे पछते भी कि यह आधी जली सिगरेट यहां क्यों रखी है? वह कहता कि इसको मुझे उठाना है किसी दिन, लेकिन उसी दिन उठाऊंगा जिस दिन मेरी पीड़ा ऐसी हो जाएगी कि आदत बड़ी और मैं छोटा हो जाऊंगा। लेकिन मैं प्रतीक्षा कर रहा हूं। वह घड़ी आती नहीं। बीस साल बीत गए। मैंने बीस साल से सिगरेट नहीं पी है, और याद भी नहीं आयी है। मैं याद करने की कोशिश कर रहा हूं कि कभी भी आ जाए, क्योंकि मैं जानना चाहता हूं किस मुसीबत में जहाज के लोगों को रस्सियां पीनी पड़ी होंगी। लेकिन वह कभी न आयी। उसने अपना संस्मरण लिखा है। मैं संस्मरण पढ़ रहा था। उसने संस्मरण में लिखा है कि मैं समझ ही नहीं पाता कि क्या बात हो गयी? क्योंकि पहले भी मैंने कई बार सिगरेट छोड़ना चाही थी, लेकिन नहीं छोड़ सका था। कई बार छोड़ी भी थी, तो दिन-दो दिन के बाद फिर पीने लगा था। लेकिन क्या हुआ? अब तो मैंने छोड़ा भी नहीं था। सिर्फ प्रतीक्षा कर रहा हूं कि जब भी आदत पकड़ लेगी और झकझोर डालेगी तो पीयूंगा। लेकिन मैं सिर्फ यह जानना चाहता हूं कि मैं भी उस जहाज में अगर होता तो क्या मैंने रस्सियां पी होती? बीस साल से आदत आयी नहीं। मेरी समझ में नहीं आता कि हुआ क्या! . उसकी समझ में नहीं आ रहा है, क्योंकि उसे ध्यान का कुछ पता नहीं है। होश का कुछ पता नहीं है। इसने छोड़ी नहीं है सिगरेट, छूट गयी होश के कारण। क्योंकि वह एक ही होश साधे हुए है कि जब इतने जोर से तलफ पकड़ेगी कि मैं रस्सियां पी लेता, तभी पीयूंगा। लेकिन उस होश के कारण तलफ नहीं पकड़ती। होश हो तो तलफ पकड़ती ही नहीं। अब उसे कोई होश को जानने वाला मिले तो उसे उत्तर मिले। लेकिन अनजाने उसने होश साध लिया है। तुमसे मैं कहता हूं, जो-जो आदत तुम्हें पकड़े हो, जबर्दस्ती पकड़े हो, उसके प्रति होश साधना। मैं तुमसे नहीं कहता, सिगरेट पीना छोड़ो। मैं कहता हूं, होशपूर्वक पीयो। मैं तो यहां आश्रम में एक कमरा बनवाने जा रहा हूं, जहां होशपूर्वक सिगरेट पीने वालों को सुविधा होगी, कि वे जाकर वहां सिगरेट जरूर पीएं, लेकिन जितनी देर पीएं उतनी देर ध्यान रखें। एक क्षण को भी बेहोशी में न पीएं, बस। फिर अगर पीना हो तो मजे से पीएं. कोई हर्जा नहीं। लेकिन मैं जानता हूं, अगर होश सध जाए तो ऐसी मूढ़ता कौन करेगा? ऐसी मूढ़ता तो बेहोशी में ही होती है। तो मैं तुमसे कुछ भी छोड़ने को नहीं कहता। क्योंकि मैं जानता हूं, छोड़ने से 151

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