Book Title: Dhammapada 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 204
________________ प्रेम है महामृत्यु लड़ाई चलती है बचने की, वह छोड़ दो। फिर पीड़ा भी समाप्त हो गयी। छोड़ते ही संघर्ष, पीड़ा समाप्त हो जाती है। लेकिन संकल्प आदमी का जन्मों-जन्मों का कमाया हुआ है, और समर्पण कठिन होता है। समर्पण भी हम करते हैं तो रत्ती-रत्ती करते हैं। रामकृष्ण के पास एक दिन एक आदमी आया और उसने आकर हजार सोने की अशर्फियां उनके सामने डाल दीं। उसने कहा, आप स्वीकार कर लें, बस मैं आपके चरणों में रखना चाहता हूं। रामकृष्ण ने कहा, इनका क्या करूंगा? अब इनकी हिफाजत कौन करेगा? तू एक काम कर, बांध पोटली वापस, और जाकर गंगा में डुबा दे। हमने स्वीकार कर लिया। अब ये अशर्फियां हमारी हैं। हमारी तरफ से तू गंगा में फेंक आ, इतना और कर। इतनी दूर तू लाया, इतना हमारे लिए कर दे। __ उस आदमी को जंची नहीं बात। उसने कहा, यह भी कोई बात हुई ? मगर अब रामकृष्ण को इनकार भी न कर सका। बांधी पोटली बेमन से। बड़ी देर हो गयी, लौटा नहीं। तो रामकृष्ण ने कहा, क्या हआ उस आदमी का? देखो कहीं डूब तो नहीं गया। कहीं ऐसा न किया हो किं पोटली तो रख दी हो किनारे और खुद डूब मरा हो! क्योंकि लोग धन को बचा लेते हैं, खुद को मिटा देते हैं। देखो, क्या हुआ उस बेचारे का? लोग गए तो देखा कि वह एक-एक अशर्फी को बजा रहा था पत्थर पर, गिन-गिन कर फेंक रहा था। और बड़ी भीड़ इकट्ठी कर ली थी उसने। लोगों ने कहा, तुम यह क्या कर रहे हो? परमहंसदेव ने बुलाया है। उसने कहा, भई, आता हूं, अब जरा पूरा गिन कर...! जब वह लौटकर आया तो रामकृष्ण ने कहा, पागल! इकट्ठा करते वक्त गिनते हैं, तब तो समझ में आता है। फेंकते वक्त क्या गिनना! जब फेंक ही रहे हैं, फिर क्या गिनना! तो पोटली इकट्ठी डुबा देता। मगर तूं छोड़ते वक्त भी गिनता रहा। अगर गिन-गिन कर छोड़ोगे तो पीड़ा की रात बहुत लंबी हो जाएगी। जब छोड़ना ही है तो बिन गिने छोड़ दो। अगर छोड़ते न बनता हो तो प्रेम की फिकर न करो, फिर ध्यान का मार्ग है। फिर कोई जरूरत नहीं है। तब ध्यान ठीक है। ध्यान ज्यादा गणितपूर्ण है, तकनीक है। उसमें तुम बचोगे और काम जारी रहेगा। वह भी तुम्हें मिटा देगा, लेकिन धीरे-धीरे मिटाएगा। प्रेम छलांग है। ध्यान में तो धीरे-धीरे व्यवस्था जमायी जा सकती है, प्रेम में कोई व्यवस्था नहीं जमायी जा सकती। होता है तो पूरा, नहीं होता है तो नहीं। सोचो मत। प्रेम के रास्ते पर तो पागल होने की हिम्मत चाहिए ही। और अगर बहुत सोच-विचार किया, और बहुत हिसाब से चले, तो न केवल देर हो जाएगी, बल्कि अगर हिसाब की आदत हो गयी तो किसी दिन परमात्मा सामने भी खड़ा हो जाए, तो तुम अपने हिसाब में तल्लीन रहोगे, तुम उसे देख न पाओगे। रामतीर्थ कहते थे कि एक प्रेमी दूर देश गया। उसकी प्रेयसी राह देखती है, राह 191

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