Book Title: Dhammapada 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 221
________________ एस धम्मो सनंतनो सम्हालने का मतलब क्या है ? तुम अपने को सम्हलने नहीं देते। जब कभी सम्हलने का क्षण आता है, तुम फिर अपने पुराने ढांचे में लग जाते हो; दौड़कर दुकान पर पहुंच जाते हो, या रेडियो खोल लेते हो, या अखबार पढ़ने लगते हो, या किसी से बातचीत करने में लग जाते हो। घबड़ाहट होती है कि ये क्षण खतरनाक हो सकते हैं। क्योंकि इन्हीं क्षणों में वैराग्य जन्मता है, इन्हीं क्षणों में संन्यास का जन्म होता है। तुम यहां-वहां उलझा लेते हो ताकि ये खतरनाक बातें तुम्हें दिखायी न पड़ें। तुम किसी झूठ में तल्लीन हो जाते हो। सत्य अगर जगाने को तुम्हारे पास भी आता है, तो तुम करवट ले लेते हो, फिर नयी नींद में खो जाते हो। ऐसा आदमी तो खोजना ही मश्किल है जिसको कभी न कभी यह दिखायी न पड़ता हो कि यह सब व्यर्थ है जो मैं कर रहा हूं। लेकिन फिर भी आदमी वही किए चला जाता है जो व्यर्थ दिखायी पड़ता है। प्रकाश के किन्हीं. क्षणों में, ज्योतिर्मय चैतन्य की किसी अवस्था में, जब सब व्यर्थ दिखायी पड़ता है, तब फिर तुम कैसे अंधेरे में उतर आते हो बार-बार? ___ इसे बुद्ध प्रमाद कहते हैं। प्रमाद का अर्थ है : जानते हो, फिर भी जो जानते हो उसके विपरीत जीते हो। जानते हो आग में हाथ डालने से हाथ जलेगा, फिर-फिर डालते हो। पुराने घाव भी नहीं मिट पाते और फिर हाथ डाल देते हो। निश्चित ही तुम होश में नहीं हो सकते, बेहोश हो; कोई बड़ी गहरी तंद्रा में जी रहे हो। 'प्रमाद में मत लगे रहो।' ये जो कभी-कभी प्रकाश के क्षण तुम्हारे जीवन में आते हैं, इनको सहारा दो, सहयोग दो। इनको घना करो। इनको पुकारो। इनकी प्रार्थना करो। इनका स्वागत करो। इनको सम्हालो अपने भीतर। इनको संजोओ। क्योंकि इनसे बड़ी कोई संपदा नहीं है। और अगर तुम इनके साथ सहयोग करो, स्वागत करो, इन्हें स्वीकार करो, अंगीकार करो, तो ये क्षण बढ़ते जाएंगे। इन क्षणों के बढ़ते जाने का नाम ही ध्यान है। ___ ध्यान का अर्थ है, जागा हुआ चित्त। प्रमाद का अर्थ है, सोया हुआ चित्त। इसलिए बुद्ध और महावीर ध्यान के लिए अप्रमाद शब्द का प्रयोग करते हैं। 'प्रमाद में मत लगे रहो।' काफी लगे रहे हो। और तुम हजार बहाने खोज लेते हो लगे रहने के। तुम कहते हो अभी...अभी बच्चे बड़े हो रहे हैं। तुम कहते हो, अभी तो महत्वाकांक्षा के दिन हैं, थोड़ा और कमा लूं। तुम कहते हो, अभी तो जवान हूं, ये धर्म और वैराग्य, ये तो बुढ़ापे की बातें हैं। ___ एक युवक को मैंने संन्यास दिया। उसका बूढ़ा बाप आ गया। बूढ़े बाप की उम्र होगी कोई सत्तर-पचहत्तर। उसने कहा, आप भी क्या अन्याय कर रहे हैं? जवान आदमी को संन्यास देते हैं? शास्त्रों में तो कहा है कि संन्यास तो अंत में लेने की बात है। मैंने कहा, छोड़ो, तुम्हारे लड़के का संन्यास वापस ले लेंगे। तुम संन्यास 208

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