Book Title: Dhammapada 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 223
________________ एस धम्मो सनंतनो लगता है। जिसका प्रयास होता है, उसकी प्राप्ति भी होने लगती है । सोचकर मांगना । क्योंकि जो मांगा है वह मिल जाता है। विचारकर मांगना । नहीं तो पछताओगे, नहीं तो रोओगे। क्योंकि इतने दिन मांगने में गए, इतने दिन जो मांगा उसको इकट्ठा करने में गए, अब वह मिल गया और कुछ भी नहीं मिला। कुछ और मांग लिया होता। 'प्रमाद में मत लगे रहो ।' पूरी जिंदगी, जिसे तुम जिंदगी कहते हो, एक गहरी नींद है; जिसमें तुम करते बहुत हो, होता कुछ भी नहीं; चलते बहुत हो, पहुंचते कहीं भी नहीं; जिसमें तुम सिर्फ मरते हो, जीते नहीं । 'कामरति का मत गुणगान करो।' मत गुणगान करो वासना का । क्योंकि जितना तुम गुणगान करते हो, अपने ही गुणगान से प्रभावित होते चले जाते हो । आदमी आत्म-सम्मोहन में गिरता है। तुमने कभी सोचा, तुम जिस चीज का गुणगान करते हो वही चीज तुम्हारे मन में समाने लगती है। गुणगान तुम्हारा ही तुम्हीं को प्रभावित कर जाता है। बुद्ध और महावीर दोनों ने कहा है, कामकथा मत सुनो। लेकिन कामकथा ही लोग देखते हैं, सुनते हैं। फिल्म हो, कि रेडियो हो, कि किताब हो, कि उपन्यास हो, कि कविता हो, लोग कामकथा ही सुनते और पढ़ते हैं। और फिर जब कामवासना जोर से पकड़ती है, घबड़ाते हैं । तब कहते हैं, यह तो बड़ा मुश्किल है, इससे छुटकारा कैसे हो ? उसी को आरोपित करते हैं, उसी को सींचते हैं, उसी को सम्हालते हैं, और जब सम्हल जाती है और जब सारे जीवन को जकड़ लेती है, तो फिर चिल्लाते हैं, चीखते हैं कि इससे छुटकारा कैसे हो। कामवासना वस्तुतः कुछ भी नहीं, सम्मोहन है । और जिस चीज के प्रति भी तुम सम्मोहित होते चले जाओ - सम्मोहित का अर्थ है जिसका भी तुम सुझाव अपने को देते चले जाओ–वही चीज रसपूर्ण हो जाती है। रस आदमी स्वयं डालता है। रस वस्तुओं में नहीं है, तुम डालते हो। इसलिए प्रत्येक संस्कृति, प्रत्येक सभ्यता अलग-अलग तरह की चीजों में उत्सुक हो जाती है। पर जिसमें उत्सुक हो जाती है, उसी में सौंदर्य और कामवासना का जन्म हो जाता है। हजारों संस्कृतियां जमीन पर रही हैं, उन्होंने अलग-अलग चीजों में सौंदर्य देख लिया है। जिसमें सौंदर्य देखना चाहा है वहीं दिखायी पड़ गया है। बुद्ध कहते हैं, 'कामरति का मत गुणगान करो।' रुको। सोचो। क्योंकि जिस चीज का भी तुम गुणगान करोगे, तुम उस तरफ अनजाने आकर्षित होते चले जाओगे। आदमी अपनी ही बातों से प्रभावित हो जाता है । तुमने कभी देखा, रास्ते में, अंधेरे में, किसी गली-कूचे से गुजरते हो, अकेले हो, डरते हो, गीत गुनगुनाने लगते हो, या सीटी बजाने लगते हो। क्या फायदा सीटी जाने से ? तुम्हारी ही सीटी है, कोई इससे कुछ सार तो न हो जाएगा। लेकिन अपनी 210

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