Book Title: Dhammapada 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 249
________________ एस धम्मो सनंतनो शुरू हो जाएगी, शांत कोने में बैठी वीणा से भी। क्योंकि वह वीणा भी ऐसी ही वीणा है-सोयी है। किसी ने छेड़ा नहीं है उसके तारों को। लेकिन यह आवाज छेड़ देगी। जब बुद्ध की बजती वीणा के पास तुम आते हो, या मीरा, या चैतन्य की नाचती हुई अपूर्व घटना के पास तुम आते हो, तुम्हारे भीतर का बुद्ध भी संवेदित होता है, संचालित होता है; तुम्हारे भीतर का बुद्ध भी प्रतिध्वनित होता है। तो तुम ही भीतर से अनुभव करते हो कि ठीक है। और बुद्ध का बल है, वह भी कहता है : ठीक है। लेकिन इन दोनों के बीच में तुम्हारा अपना अनुभव है, उसकी बड़ी पर्त है। वह तुमसे कहे चली जाती है कि बुद्ध ठीक कहते हैं, लेकिन अभी मेरे लिए नहीं। ठीक हैं अंत में, पर अभी मैं संसारी आदमी हूं। होगा ठीक आखिर में, फिर भी कौन जाने! तुम बीच में संदेह भी उठाते जाते हो। तुम तर्क भी नहीं कर सकते, बुद्ध से लड़ भी नहीं सकते और बुद्ध को तुम स्वीकार भी कैसे करो? इनकार भी नहीं कर सकते, स्वीकार करना भी मुश्किल है-इन दोनों के बीच दुविधा में तुम्हारा जीवन हो जाता है। तब तुम मानते बुद्ध की हो और करते अपनी। तब तुम मानते तो यही हो-दीवाल पर लिख लेते हो, क्रोध पाप है; लेकिन तुम्हारी जिंदगी में क्रोध ही क्रोध लिखा होता है। तुम कहते हो, यह तो दीवाल पर इसलिए लिखा है ताकि याद रहे। लेकिन जब तुम्हें भीतर ही याद नहीं रहता तो दीवाल पर लिखा हुआ क्या याद आएगा, क्या काम पड़ेगा? हां, जब तुम क्रोध न करोगे, तब तुम पढ़ लोगे और पछता लोगे। और जब क्रोध आएगा, तब तो तुम्हें भीतर की लिखावट भी दिखायी नहीं पड़ती, दीवाल को कौन देखेगा? जीयोगे तुम अपने ही ढंग से, मान लोगे बुद्ध की। उससे एक अड़चन पैदा होगी, एक दुविधा, एक द्वंद्व; तुम दोहरे हो जाओगे, तुम पाखंडी हो जाओगे। कहोगे कुछ, करोगे कुछ। जो कहोगे उसके विपरीत करोगे। जो करोगे उसके विपरीत कहोगे। __इसीलिए तो अगर किसी से सलाह लेनी हो तो नासमझ से नासमझ आदमी भी बड़ी बुद्धिमानी की सलाह दे सकता है। अगर तुम किसी मुसीबत में हो, किसी से भी पूछ लो जो उस मुसीबत में नहीं है, वह तुम्हें ऐसी सलाह देगा कि बुद्ध भी सोचें कि शायद हमसे भी ऐसी सलाह देते न बनती। लेकिन जब तुम उस आदमी को मुसीबत में देखोगे तो तुम पाओगे, वह तुम्हारे जैसा ही व्यवहार कर रहा है। अपनी सलाह अपने ही काम नहीं आती। कहां भूल हो गयी है? ___मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं : हमें ज्ञान तो सब है, हमें मालूम सब है कि क्या ठीक है और क्या गलत है. लेकिन ठीक फिर होता क्यों नहीं? ठीक होने के लिए कोरा ज्ञान काफी नहीं है। ठीक होने के लिए ध्यान जरूरी है, ज्ञान जरूरी नहीं है। ज्ञान के बिना भी ठीक हो सकता है, ज्ञान के होते भी ठीक न हो। ध्यान चाहिए। ___ मैंने कहा कि सपना है तुम्हारी जिंदगी, मेरी बात मान मत लेना। अन्यथा मुझ 236

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