Book Title: Dhammapada 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 251
________________ एस धम्मो सनंतनो हैं, तुम गलती में हो। तुम सोचते हो, हिंदुस्तान-पाकिस्तान इसलिए लड़ते हैं कि उनकी राजनीति अलग-अलग है, तुम गलती में हो। तुम सोचते हो, रूस-अमरीका इसलिए लड़ते हैं कि उनका सिद्धांत और शास्त्र अलग-अलग है, तुम गलती में हो। शास्त्र बदल दो, सिद्धांत बदल दो, धर्म बदल दो-लड़ाई जारी रही है। हिंदू-मुसलमान न लड़ेंगे, तो गुजराती-मराठी लड़ेंगे-वे दोनों ही हिंदू हैं। हिंदू-मुसलमान न लड़ेंगे, तो पूर्व पाकिस्तान पश्चिम पाकिस्तान से लड़ेगा-वे दोनों ही मुसलमान हैं। जिन्ना के भूत को भी स्मरण नहीं आता होगा कि यह कैसे हो रहा है? समझ में नहीं आता होगा कि यह कैसे हो रहा है? मुसलमान मुसलमान से लड़ रहे हैं! छोड़ो, पाकिस्तान दोनों अलग हो गए अब तो, अब बंगला देश में बंगला मुसलमान ही बंगला मुसलमान की हत्या कर रहा है। ___ आदमी हत्या में उत्सुक है, बाकी सब बहाने हैं। आदमी मारने में उत्सुक है, क्योंकि आदमी जीना नहीं जानता। आदमी क्रोध के लिए आतुर है, क्योंकि आदमी प्रेम की कला भूल गया है। आदमी के साज पर प्रेम का, ध्यान का नग्मा बजता ही नहीं; साज ही टूट गया है। साज से बस ऐसी ही आवाजें उठती हैं-युद्ध की, विध्वंस की। एक बात खयाल रखना, पाखंडी मत बन जाना। मैं जो कहता हूं, उसे मान लेने की जरूरत नहीं है, उसे जानने की जरूरत है। तुम मेरी मानकर आचरण में मत बदलने लगना उसे, अन्यथा तुम सदा के लिए भटक जाओगे। ___ तुम्हारे धर्मगुरु तुमसे यही कहते हैं कि सुन लिया, अब इसे आचरण में लाओ। मैं तुमसे कहता हूं, सुन लिया, अब इसे जानो, आचरण की बकवास मत उठाओ। क्योंकि जानने वाले के लिए आचरण अपने आप आ जाता है। - आचरण छाया है ज्ञान की। ज्ञान क्रांति है। मैं तुमसे यह नहीं कहता कि आचरण में लाओ। यह तो बात ही व्यर्थ है। मैं तुमसे इतना ही कहता हूं, जो तुमने मुझसे सुना, समझ मत लेना कि तुमने जान लिया। मुझसे तुमने सिर्फ सुना, यह एक परिकल्पना है तुम्हारे लिए। मैंने तुम्हें एक कुंजी दी खोज के लिए, खोज तुम्हें करनी पड़ेगी। यह खजाना नहीं है, यह सिर्फ कुंजी है। इस कुंजी को तुम खीसे में रखे रहो, इससे खजाना न मिल जाएगा; खजाना तुम्हें खोजना पड़ेगा। जो मैंने कहा, इसको तुम दिशासूचक-संकेत समझो। यह मील का पत्थर है, जिस पर तीर लगा है कि आगे जाना है। इस मील के पत्थर को मंजिल मत समझ लेना; यात्रा करना। और मैं तुमसे कहता हूं, यात्रा आचरण की नहीं, ज्ञान की; क्योंकि जब ज्ञान आता है, तो आचरण अपने से आ जाता है। जिसने ठीक जान लिया, वह ठीक हो जाता है। सम्यक-बोध सम्यक-जीवन की आधारशिला है। इसलिए महावीर ने कहा : सम्यक-ज्ञान। बुद्ध ने कहाः सम्यक-दृष्टि। ठीक-ठीक दृष्टि, बस, पर्याप्त है; बाकी तो सब विस्तार की बातें हैं। 238

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