Book Title: Dhammapada 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 242
________________ देखा तो हर मुकाम तेरी रहगुजर में है यह तो पूछो ही मत कि खोपड़ी से कैसे मुक्ति हो जाए। यह कौन है जो पूछ रहा है? यह खोपड़ी ही है जो पूछ रही है। अगर इस खोपड़ी की बात मानकर चले, तो इससे तुम कभी मुक्त न हो पाओगे। जागकर देखो, कौन पूछता है ? गौर से सुनो, कौन प्रश्न उठाता है? यह कौन है जो मुक्त होना चाहता है? क्यों मुक्त होना चाहता है? बंधन कहां है? और जिसने भी जागकर देखा, वह हंसने लगा; क्योंकि बंधन उसने कभी पाए नहीं। जागने में कोई बंधन नहीं है। इसलिए बुद्ध चिल्ला-चिल्लाकर कहते हैं, प्रमाद में मत जीयो। अप्रमाद! जागो। होश में आ जाओ! और तुम कहीं भी गए नहीं हो। तुम वहीं हो जहां तुम्हें होना चाहिए। भैंस तुम कभी हुए नहीं हो। तुम वही हो जो तुम हो। तुम परमात्मा हो। इससे तुम रत्तीभर यहां-वहां न हो सकते हो, न होने का कोई उपाय है। हां, तुम भ्रांति में रह सकते हो। तुम अपने को जो चाहे समझ लो। मन शक्तिशाली है। तुम जो चाहोगे वही बन जाओगे। और जिस दिन भी तुम देखना चाहोगे, उस दिन तुम दृष्टि बन जाओगे। दृष्टि मुक्ति है। समझे थे तुझसे दूर निकल जाएंगे कहीं समझे थे तुझसे दूर निकल जाएंगे कहीं देखा तो हर मुकाम तेरी रहगुजर में है कहां जाओगे दूर निकलकर परमात्मा से? कहीं भी जाओगे, पाओगे उसके ही रास्ते में तुम्हारा मुकाम है। . समझे थे तुझसे दूर निकल जाएंगे कहीं देखा तो हर मुकाम तेरी रहगुजर में है हर मुकाम उसी का है। हर पल उसी का है। अस्तित्व से दूर जाने का उपाय कहां है? कैसे जाओगे दूर? हां, सोच सकते हो, विचार कर सकते हो कि दूर निकल गए। और जब दूर निकलने का खयाल आ जाएगा तो तुम चिल्लाओगे, पूछोगे, पास कैसे आ जाएं? अब जो तुम्हें पास आने का रास्ता बता देगा, वह तुम्हें भटका देगा। क्योंकि दूर अगर निकले होते, तो पास भी आ सकते थे। दूर कभी निकले ही नहीं, इसको ही जानना है। तो अगर सार मैं तुमसे कहूं : बंधन की तरफ आंख करो। जहां-जहां बंधन दिखता हो, वहीं-वहीं ध्यान को लगाओ। बंधन ध्यान का विषय बन जाए। और तुम पाओगे, तुम्हारे ध्यान की ज्योति जैसे-जैसे सघन होती है, वैसे-वैसे बंधन तरल होकर बिखर जाता है। जिस दिन ध्यान की ज्योति परिपूर्ण सघन हो जाती है, अचानक तुम पाते हो कि बंधन गया। सपना था, टूट गया। नींद का खयाल था, मिट गया। 229

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