Book Title: Dhammapada 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 243
________________ एस धम्मो सनंतनो बिखरा ध्यान हो, तो खोपड़ी है। इकट्ठा ध्यान हो, खोपड़ी गयी। विचार ध्यान के टुकड़े हैं। छितर गया ध्यान, जैसे दर्पण को किसी ने पटक दिया, खंड-खंड हो गया। इकट्ठा जमा लो; बस उतना ही राज है। इसलिए ध्यान को चिंतन, मनन, विमर्श बनाओ। खोपड़ी से मुक्त हो जाने की बात मत पूछो। खोपड़ी में कुछ भी बुरा नहीं है: वहां भी परमात्मा ही विराजमान है। वह भी उसी का मंदिर है। वह भी उसकी ही रहगुजर है। वहां से वही गुजरता है। अगर तुम गलत न समझो तो मैं तुमसे कहूंगा, विचार भी उसी के हैं, निर्विचार भी उसी का है। तनाव भी उसी का है, और शांति भी उसी की है। संसार भी उसी का है और मोक्ष भी उसी का है। इसलिए झेन फकीरों ने एक बड़ी अनूठी बात कही है, जिसको सदियों तक लोग सोचते रहे हैं और समझ नहीं पाते हैं। झेन फकीरों ने कहा है : संसार और मोक्ष एक ही चीज के दो नाम हैं। ठीक से न देखा तो संसार, ठीक से देख लिया तो मोक्ष। लेकिन सत्य एक ही है। गैर-ठीक से देखने का ढंग क्या है? आंख बचा-बचाकर चलते हो। भीतर कामवासना है, तुम उसे देखते नहीं। तुम्हारे न देखने में ही वह बड़ी होती चली जाती है-भैंस के सींग बड़े होते चले जाते हैं। भीतर क्रोध है, तुम उसकी तरफ पीठ कर लेते हो डर के मारे कि कहीं आ ही न जाए, ऊपर न आ जाए, किसी को पता न चल जाए! भीतर-भीतर क्रोध की जड़ें फैलती जाती हैं। तुम्हारा पूरा व्यक्तित्व विषाद, दुख, उदासी, भय और क्रोध के जहर से भर जाता है। और जितना ही यह बढ़ने लगता है, उतने ही तुम डरने लगते हो। जितने तुम डरने लगते हो, उतना ही तुम देखते नहीं; तुम आंख बचाने लगते हो। तुम अपने से आंख बचा-बचाकर कब तक भागोगे, कहां भागकर जाओगे? तुम अपने से आंख बचा रहे हो, यही उलझन है। बचाओ मत। जो है, जैसा है, उसे देख लो। और मैं तुमसे कहता हूं, उसके देखने में ही मोक्ष है। जिसने देख लिया ठीक से अपने को, उसने सिवाय परमात्मा के और कुछ भी न पाया। समझे थे तुझसे दूर निकल जाएंगे कहीं देखा तो हर मुकाम तेरी रहगुजर में है दूसरा प्रश्नः कभी-कभी भगवान बुद्ध और लाओत्से का बोध एक सा लगता है मगर हैं दोनों एक-दूसरे के उलटे छोर पर। मेरी अपनी समस्या यह है कि मेरा स्वभाव प्रेम से ज्यादा ध्यान पर 230

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