Book Title: Dhammapada 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 238
________________ देखा तो हर मुकाम तेरी रहगुजर में है पहला प्रश्न: भगवान, एक ही आरज है कि इस खोपड़ी से कैसे मुक्ति हो जाए? आपकी शरण आया हूं। पूछा है चिन्मय ने। खोपड़ी से मुक्त होने का खयाल भी खोपड़ी का ही है। मुक्त होने की जब तक आकांक्षा है, तब तक मुक्ति संभव नहीं। क्योंकि आकांक्षा मात्र ही, आकांक्षा की अभीप्सा मन का ही जाल और खेल है। मन संसार ही नहीं बनाता, मन मोक्ष भी बनाता है। और जिसने यह जान लिया वही मुक्त हो गया। साधारणतः ऐसा लगता है, मन ने बनाया है संसार, तो हम मन से मुक्त हो जाएं तो मुक्त हो जाएंगे। वहीं भूल हो गयी। वहीं मन ने फिर धोखा दिया। फिर मन ने चाल चली। फिर मन ने जाल फेंका। फिर तुम उलझे। फिर नया संसार बना। मोक्ष भी संसार बन जाता है। संसार का अर्थ क्या है? जो उलझा ले। संसार का अर्थ क्या है? जो अपेक्षा बन जाए, वासना बन जाए। संसार का अर्थ क्या है? जो तुम्हारा भविष्य बन जाए। जिसके सहारे और जिसके आसरे और जिसकी आशा में तुम जीने लगो, वही संसार 225

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