Book Title: Dhammapada 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

Previous | Next

Page 227
________________ एस धम्मो सनंतनो तुमसे अलग नहीं किया जा सकता। मेरा हाथ तुम काट सकते हो, वह मेरा स्वभाव नहीं है। क्योंकि बिना हाथ के भी मैं रहूंगा। मेरी आंख तुम फोड़ सकते हो, वह मेरा स्वभाव नहीं है। क्योंकि बिना आंख के भी मैं रहूंगा । योगियों ने ऐसे प्रदर्शन किए हैं, जिनमें उन्होंने श्वास भी छोड़ दी, और फिर भी रहे। तो श्वास भी स्वभाव नहीं जो भी अलग किया जा सके, वह स्वभाव नहीं है। जो तुमसे अलग न किया जा सके, वही तुम हो। इस मूल की खोज करनी ही ध्यान है, कि मैं उसी को पकड़ लूं जिसको कोई मुझसे छीन न सके। जो चुराया न जा सके, जो काटा म जा सके, जलाया न जा सके, मिटाया न जा सके। मैं अकेला ही चला था जानिबे-मंजिल मगर लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया प्रत्येक व्यक्ति जब चला था तो अकेला ही चला था। प्रत्येक व्यक्ति जब चला था तो ऐसी ही क्षीण धारा थी जैसी गंगोत्री की - शुद्ध स्वभाव की । प्रत्येक व्यक्ति जब चला था तो सिर्फ ध्यान की तरह चला था। फिर, लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया। फिर इंद्रियां जुड़ीं, और शरीर जुड़ा, और वासनाएं जुड़ीं, और काम जुड़ा, और संसार जुड़ा। फिर से उसकी खोज कर लेनी है जो तुम चले थे, मूल जो तुम्हारा था । झेन फकीर अपने शिष्यों को कहते हैं, अपने मूल चेहरे को खोजो - ओरिजिनल फेस । झेन फकीर कहते हैं, उस चेहरे को खोजो जो तुम्हारा था जब तुम्हारे मां-बाप भी पैदा न हुए थे। उस मौलिक को खोजो जो सदा-सदा तुम्हारा था । कभी रास्ते पर नहीं मिला था । और शेष सब वस्त्र हैं, जो तुम अपने चारों तरफ इकट्ठा करते चले गए। पर्त-पर्त वस्त्रों की उतार डालनी है, और उसको खोज लेना है जो तुम हो मूलतः, जो तुम्हारा स्वभाव है। ध्यान ऐसे ही है जैसे कोई प्याज के छिलकों को छीलता चला जाए। छिलके के बाद छिलके हैं, और छिलके के बाद छिलके हैं। और फिर एक घड़ी आती है जब सब छिलके खो जाते हैं और शून्य हाथ में रह जाता है। वही शून्य तुम्हारा स्वभाव है। इसलिए बुद्ध को लोगों ने शून्यवादी कहा। क्योंकि उन्होंने कहा कि वही शून्य तुम्हारा स्वभाव है, वही शून्य ध्यान है। तो ध्यान में परमात्मा की भी याद न रह जाए, क्योंकि वह भी एक पर्त होगी, वह भी एक अशुद्धि होगी, क्योंकि वह भी छोड़ी जा सकती है। जो भी छोड़ा जा सकता है वह छोड़ देना ध्यान की खोज है। उसी को बचा लेना है जो बच ही जाएगा, जिसको तुम छोड़ना भी चाहो तो न छोड़ सकोगे। और जैसे ही कोई व्यक्ति उस मूल स्वभाव को पहुंच जाता है, आनंद की अपरिसीम वर्षा हो जाती है। कबीर ने कहा है कि मैं नाच रहा हूं और अमृत बरस रहा है। उस शून्य की घड़ी में सब मिल जाता है, सब - जो तुमने चाहा था और जो तुमने चाहा नहीं भी था, जो तुमने सोचा था और जिसे तुम सोच भी न सकते 214

Loading...

Page Navigation
1 ... 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266