________________ सार्थ धम्मि तया निःप्रसरं सुरां // 35 // उच्चावचगिरस्ताम्र-कपोला घूर्णितेदाः // प्रमदा मदयामासु-. र्न कं पीतमदास्तदा // 40 // अथायःशूलिकी. स्वांते / वचसामृतसारणी॥ शंगली दंगलीनात्मा ऽन्वशिषडम्मिलं रहः // 41 // वत्स नाडियसे मद्य / वेश्यौकसि वसन्नपि // केयं ते वैषी वस्तु 204 | -ऽन्यपदोषेऽपि रोषिणः // 42 // यदागतं वार्षिविलोमनेन / यदाढतं यादवनायकेन // यद्य| नो प्रारंग को. // 30 // ते समये दुष्ट उपायने जाणनारी ते कुटणीए वसंततिलकाने तयावी. जी वेश्याने पण खूब मद्यपान कराव्यु. // 30 // ते वखते मद्यपान करनारी ते स्त्रीन गली. च वचनो बोलतीयकी लाल गंडस्थलोवाळी तया घेरायेली आंखोवाळी 23 थकी कोने मदोन्मत्त करवा न लागी? // 40 // मनमां लोखंडनी शूलीसरखी, तथा वचनमां अमृतनी नहेरसरखी ते दानिक कुटणी. गुप्त रीते धम्मिलने कहेवा लागी के, // 41 // हे वत्स ! तुं वेश्याने घेर रह्या जतां जे मदिरा पीतो नथी, तो था निर्दोष वस्तुमां पण रोष करनारो एवो जे तुं, तेनी आ च. तुरा ते केवा प्रकारनी ? // 42 // जे था मद्य समुद्र क्लोववाथी मव्युं , तथा जेनो यादवो. ना स्वामी श्रीकृष्णणे पण पादर कर्यो ने, वळी जे बळ तथा शरीरनी कांति वधारनार में, ते मद्यः P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust