Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 02
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 175
________________ धम्मिः // राजवंश्या अपि वयं / दासीवत्तनुकीकृताः // 4 // एकांगणे प्रियं दृष्ट्वा / सपत्नीनिरतं स्त्रियः / / मन्यते शूलिकाध्यासं / दणं क्वेशकरं वरं // 5 // व्यापाद्यापि तदेतां किं / न भवामः सुखास्पदं // एकस्या मारणे बढयो / जीवंतीति न पुर्नयः // 6 // 347 // इति श्रीधम्मिलचरित्रस्य द्वितीयो जागः समाप्तः / / | ली क्यांकथी यावेली ते स्त्रीए आपणने राजवंशीनने पण दासीनीपेठे हलकी करी नाखी. // | // 4 // एकज बांगणामां रहेली शोकमां आसक्त थयेला पोताना प्रियतमने जोश्ने क्षणवार | क्वेश करनारा एवा शूलीपर चडवाना दुःखने स्त्रीने सारं माने जे. // 5 // माटे याने मारीने प. ण आपणे शामाटे सुखी न थश्ये? केमके एकने मारवाथी घणी जीवे ए कई अन्याय कहेवा. | य नहि. // 6 // // एवी रीते श्रीधम्मिलचरित्रनो बीजो जाग संपूर्ण थयो . // Jun Gun Aaradhak Trust PPAC.Gunratnasuri M.S.

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