Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 02
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 173
________________ धम्मि- चंद्रो गुणाकरः // 13 // मया चतुर्निया मेने / सम्यग्नास्य तदा वचः // परमद्यापि सोत्कठे / / मारी चेतस्तंप्रति धावति // 6 // तत्तत्रैव मया गम्यं / लोकोक्त म किं भयं // वैजयंती न किं न. म-दंडादंडांतरं भजेत् // 7 // ध्यात्वेति तमसां राशि-स्तमखिन्या बलेन सा // निरगान्मा. 345 तुलागारा-नगराच्च कथंचन // 7 // प्रेयःप्राप्तिमनोरयः खलु रथो हाई बलं शंबलं / तृष्णा दीपधरा पुरः प्रचलितोत्कंठा सखी पार्श्वतः // सौगाग्यप्रमदः प्रशस्तशकुनो दोषाश्च संप्रेषकाः। मा. नी बीकथी तेनुं वचन सम्यकप्रकारे मान्यु नहोतुं, परंतु हजु माझं नत्कंचित मन तेनापते दोडे बे. // 6 // माटे हवे मारे त्यांज जवू, लोकापवादनो शुं जय के ? केमके एक दंड नांगी ज. वाथी शुं बीजा दंडपर पताका नथीचमती? // 9 // एम विचारीने अंधकारना समुहसरखी ते कनकवती रात्रिना बलवडे युक्तिथी मामाना घरमांथी तया नगरमाथी पण बहार निकली गइ. // // ते समये तेणीना प्रयाणमाटे प्रियतमनी प्राप्तिना मनोरयरूपी रथ हतो, मनोबलरूपी नातुं हतुं, तृष्णारूपी दीवी नपाडनारी बागल चालती हती, नत्कंठारूपी सखी तेणीनी पासे ह. ती, सौजाग्यना हर्षरूपी तेणीने उत्तम शकुन थयां हतां, दोषोरूपी तेणीना नोकरो हता, अने। P.P.AC.GunratnasuriM.S.

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