Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 02
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 172
________________ 344 धम्मि. यात एव जग में / स हि संजाव्यते गतः // मन्ये कुतोऽपि जज्ञेऽसौ / मम तच्चित्तचापलं // बन्यो दृष्ट्वा स्त्रियो दोषं / मास्येत्तां म्रियेत वा / पुण्यवानेष यद् द्वेषं / मयि वाचापि नाचरत् / / // 50 // श्रुत्वा वाचं गुरोरेष | मां मुमुक्षुः पुराप्य त् / इदानीं तु ममाऽन्यायं / विझाय पावः जध्रुवं // 1 // एष प्रवजितश्चेत्तत् / फलितं मे मनोरथं // यांत्या ममेप्सितं स्थानं / यनिर्विघ्न| मथावत् // 2 // यतो मामात्मसात्कन्तु / सुतः शंखपुरेशितुः / चक्रे चाटूनि दूत्युक्त्या / गुण . धारं नु के मारा मननी ते चपलता तेणे कोइ पण रोते जाणी लीधी बे. ॥जए॥ बीजो माणस तो स्त्रीनो दोष जोश्ने तेणीने मारे अथवा पोते मरे, परंतु ते पुण्यवाने तो वचनयी प. माराप्रते देष देखाड्यो नहि. // // गुरुनी वाणी सांजळीने ते प्रथम पण मने गेडवानी हावाळो हतो, अने हवे तो मारो अन्याय जाणीने तेणे खरेखर दीदा लीधी बे. // 51 || बने जो तेणे दीदा सीधी होय तो मारो मनोरय पण सफल थयो , केमके हवे मने जित स्थाने जवामां कई विघ्न रहो नथी. // ए॥ वळी शंखपुरना राजाना गुणचंद्र नामना गुणवान पुत्रे मने पोतानी स्त्री करवामाटे दूतीमारफते कालावाला कर्या . / / ए३ // ते वखते में नार P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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