Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 02
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 154
________________ 316 धम्मिः यि स्थितं सर्वं / मयि निःसत्वता पुनः // 4 // त्वां विनिद्रमुपद्रोतु-मृनुदापि न हि प्रनुः // स्था। मा तुमीष्टे महेगोऽपि / जाग्रतो नाग्रतो हरेः // 5 // प्रेरितेन प्रजावत्या / दुःकर्मेदं मया कृतं // वा योदस्ता न किं रेणु-श्गदयत्यर्कमंडलं // 6 // कुमारस्तमुवाचेति / सचेतन विचारय // कुपथ्य : मिव रोगिणां / स्त्रीवचो मूलमंहसां // 7 // वनितावाक्यजंबाले / विघ्ने पुण्याध्वचार्यपि // स्खलि. त्वा निपतत्येव / बुद्धिमान बलवानपि // 7 // तत्सदा तुबुद्धीनां / स्त्रीणां मा विश्वसीरिति / न. त्यारे ते विद्याधर बोल्यो के हुँ शुं कहुं ? खरेखर हुं मंदजागी डं, सर्वे हिम्मत तारामां रही जे, भने मारामां तो नाहिम्मत गरेली में. // 4 // तने जागतांथकां उपद्रव करवाने इंद्र पण समर्थ नथी, केमके महान हस्ती पण जागता सिंहनी पासे नन्नी शकतो नथी. // 5 // स्त्रीनी प्रेरणाथी में या दुष्कार्य कयु , केमके वायुए नडाडेली धूळ शुं सूर्यमंडलने थानादित नयी करती ? // 6 // त्यारे कुमारे तेने कह्यु के हे बुध्विान् ! तुं विचार के रोगीनने जेम कुपथ्य तेम स्त्रीन वचन पापोर्नु मूळ जे. // 7 // शुग मार्गे चालनारो बुध्विान तथा बलवान प्राणी पण स्त्रीना वि. मरूप वचनरूपी कादवमां लपटीने पमी जाय . / / 7 // माटे तुब बुध्विाळी स्त्रीननो तारे है. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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