Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 02
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 158
________________ 330 धम्मि- ईनं // 22 // चेददि तजुरोः पार्था / परिव्रज्य तपोऽसिना // श्रावां भवावः कारीन् / हत्वा ता. | स्विकसात्विको // 3 // साप्यूचे प्रिय सूरींडो-पदेशश्रवणोचितं // त्वयोच्यत न को मुंचत्युझारं भक्तसन्निनं // 24 // परं चिंतय तारुण्य-मद्याप्युटवणमावयोः // विषमा विषयाश्चैते / दु. जैया यतिनामपि // 25 // मनश्च वृश्चिकग्रस्त-गोलांगूलचलाचलं // दीणा नाद्यापि जोगेडा / कथं व्रतमुपास्वहे // 26 // प्रारखेचरवचोबंधात् / ततस्तत्रातृविप्लवात् // जोगरंगं विना न्मे-5. तो आपण बन्ने गुरुपासे दीदा लेश्ने तपरूपी तलवारवडे कर्मरूपी शत्रुनने हणीने खरा पराकमी थश्ये. // 23 // त्यारे ते पण बोली के हे प्रिय ! थापे सुरीऽनो उपदेश सांगलीने योग्य. ज कहुं , केमके आहारसरखो कोने जमार थावतो नथी? // 24 // परंतु पाप विचारो के हजु थापणी नरयुवावस्था मे, अने या विषम विषयो मुनि ने पण जीतवा मुश्केल . // 25 // वळी मन वांछीए करडेला बळदना मांसरखं चंचल , तेम हजु पापणी गोगोनी बाकीण थ नथी, तो पड़ी शीरीते व्रत लेश्शुं? // 26 // प्रथम ते विद्याधरना वचनबंधथी तथा पनी ते. ना जाना नपऽवधी नोगरंगविना मारूं यौवनरूपी वृत निष्फल श्रये बे. // 27 // वळी वि. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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