Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 02
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ धम्मि- नने // प्रेषयामास मां कार्या-तरेण स्वांगसेवकं / / 56 // स्वामिकार्य विनिर्माय / सत्वरं सोऽह. मागतः॥ अनाऽपश्यन कुमारं तं / त्वां पृबन्नस्मि सुंदर // 7 // स्थिरस्थाम धियां धाम-गुणव मन्यिधादय / श्ष्टप्राप्तिप्रमुदित-कुमारः सोऽगमद्गृहं // 17 // तत्किं सा मिलिता तस्य / त्रस्य 337 न्मृगविलोचना // इति तेन पुनः पृष्टे / जगदे गुणवर्मणा // 17 // मेलः किमुच्यते. मुग्ध / | स तामादाय सादरं / / विवेश नगरं व्योम / हिमांशुखि कौमुदीं // 60 // प्रथमे प्रथमालोके मां श्राव्यो हतो, भने तेणे मने पोताना खानगी नोकरने कक कार्यमाटे पागे मोकल्यो ह. तो. // 56 // ते मारा खामीनू कार्य करीने हुं यहीं तुरत पागे थाल्यो ढुं, परंतु यहीं कुमारने नहि जोवाथी हे सुंदर! हुं तमोने पूढे बु. // 57 // हवे ते महा धैर्यवान तथा बुध्विान गु. णवर्माए तेने कह्यु के, ते गुणचंड कुमार तो पोताने इबित वस्तु मलवायी खुशी थश्ने र गयो. // 50 // त्यारे शुं चमकेला हरिणसरखां लोचनवाळी ते स्त्री तेने मळी ? एम तेणे फरी. | वार पूजवाथी गुणवर्मा बोल्यो के, // 55 // अरे मुग्ध! मेलापनी तुं शुं वात करे जे? ते तो चंड जेम चांदनीने लेश्ने थाकाशमां तेम तेणीने सन्मानपूर्वक लेश्ने नगरमां दाखल पण थ. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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