Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 02
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ धम्मि- ऽप्यनयोः प्रेम यभृशं / / तदिदं साधु संजात-मियुक्त्वा सोऽपि जग्मिवान् // 61 // सर्वागममिमाई कीलानि-रालीढ श्व दुःखितः // गुणवर्मा च दध्यौ धिग् / रामा वामा खनावतः // 6 // या त्रिलोकेऽपि धीराणां / चरत्यस्खलिता मतिः / / सापि न स्त्रीमनोवली-वनं गाहितुमीश्वरी // 63 / / 330 ध्रुवं ध्वजगजश्रोत्र-वीचिविद्युद्धनौकसः // चापल्यविद्याचार्यस्य / विनेया वनिताहृदः // 64 // दोषा योषासु निःशेषा / अपि प्राप्तापदाः सदा // पुनः स्त्रीलिंगसाधा-मन्ये मायामहाग्रहाः / / गयो. // 60 // अरे! प्रथम नजरे पमतांज तेज बन्नेवच्चे घणोज प्रेम प्रगट थयो हतो, माटे था ठीक थयु, एम कहीने ते पुरुष पण त्यांची चालतो थयो. // 61 // हवे जाणे सर्व शरीरपर अमिनी काळ लागी होय नहि तेम दुःखित थयेला ते गुणवर्माए विचार्य के कुदरतयीज नीच एवी स्त्रीनने धिक्कार . // 6 // विद्वानोनी जे बुद्धि त्रणे लोकमां पण अटकावरहित चाली जाय , ते बुद्धि पण स्त्रीनना मनरूपी वेलमीनना वनमां पहोंचवाने समर्थ थती नथी. // 63|| खरेखर चपलतारूपी विद्याचार्यना ध्वजा, हाथीना कर्ण, मोजां, विजळी, वृदो तथा स्त्रीननां हृद. य ए शिष्यो बे. // 64 // स्त्रीजनेविषे हमेशां दुःख आपनारा सघन दोषो , तथा स्त्रोलिंगना P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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