Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 02
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ धम्मि- वकेशी यौवनमः // 27 // व्रजेविषयवातूलः / कदाचित्पतिकूलतां // तदा किं शीलशैलापात् / / पततामवलंबनं // 27 // ततत्रिकालविदं कंचित् / पृष्ट्वा नाय यथोचितं // करिष्याव इति प्रोक्ते। तया प्रोवाच नृपः // 27 // प्रिये मम न विश्वासः / कोऽपि कालस्य रदसः // क्रीडाकंकव. द्यस्य / पातोत्पातरतो रविः // 30 // श्रेयांसि बहुविघ्नानि / जति महतामपि // श्रयोविधौ विलं. बंते / तत एव न धीधनाः // 31 // मृत्युः कदापि जातश्चे-देवमेव विषण्ययोः // तदाचकर्ष नौ नेत्रै-दर्शयित्वा निधि विधिः // 32 // तथापि नन्वि नेदानीं / यदि ते स्वदते व्रतं // तलमा. षयोरूपी वायुविकार जो प्रतिकूल थाय तो पजी शीलरूपी पर्वतनी टोंचेथी पडतांयकां अापणने कोण अाधारत थशे? // // माटे कोक त्रिकाळझानी मुनिने पूछीने आपणे यथोचित करीशं, एवी रीते कनकवतीए कहेवाथी राजकुमार बोल्यो के // 27 // हे प्रिये ! मने था का. ळरूपी राक्षसनो जरा पण विश्वास नथी. के जेने क्रीडा करवाना दडानीपेठे सूर्य उगळी रह्यो ने. // 30 // वळी महान पुरुषोने पण श्रेयकार्यों बहु विघ्नवानं थ५ पडे , अने तेथीज बुझिवा. | न लोको श्रेयकार्यमां विलंब करता नथी. // 31 // वळी कदाच पुण्य कर्याविना श्रापणुं जो एम Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.

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