Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 02
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 150
________________ धम्मि- // 5 // नास्ति तत्किंचनस्थानं / यद्देवस्य दुरात्र मं / / क्वेशयति कदाशामि-Kधा स्वं मंदमेधसः मा // 6 // ममं महोदधौ मत्स्य-पृाघातोललकाले // सुप्तं कांतार नुपीठे / रिनोगिबिलाकुने // 7 // अनेकश्वापदोबिष्टं / पयः पीतं च नैमरं // न जानेऽद्यापि दुःखानि / दाता धाता कि 312 | यति मे // 7 // ततः कनकवत्यूचे / किमेवं देव खिद्यसे // न जातु वृणुते लक्ष्मी-जन नि. | र्वेदनाजनं // जय // श्वनं बिलं गिरिावा / वनं वेश्मायुधं तृणं // सिंहो मृगोंबुधिर्बिदु-खि री ते (मारी ) नगरी क्या ? श्रने विकासेल मुखवाळा अजगरोथी नरेली या अटवी क्यां? / / // 5 // ज्यां देव पहोंची वळतो नथी एवं को पण स्थान नथी, माटे मंदबुधि माणसो फो. कट खोटी पाशाथी पोताना आत्माने क्लेश आपे . // 6 // मत्स्यपुबनी पगयी नगळ. ता जलवाळा महासागरमा हुं बुड्यो, तेमज घणा सोना बिलोथी भरेली वनजमीना तलपर प. ण सुतो. // 7 // वळी अनेक जंगली पशुञ्जनुं एठं करणान्नुं जल पण पीई, परंतु हजु विधाता मने केटलां दुःखो देशे ते मालुम पडतुं नथी. // 7 // त्यारे कनकवती बोली के हे स्वा. | मी! थाप ग्राम खेद शामाटे करो गे? केमके कंटाळेला मनुष्यने कोइ पण समये लक्ष्मी वर डोण P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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