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पदार्थों के ऊपर प्रीति, ८. 'अरति '-रति से विपरीत सो अरति, ६ 'भय'- मप्त प्रकार का भय, १०. 'जुगुप्सा'-घृणा मलीन वस्तु को देखकर नाक चढाना. ११. 'शोक' चित्त का विकलपना, १२. 'काम'मन्मथ. स्त्री-पुरुष-नपुसक इन तीनो का वेदविकार, १३ ‘मिथ्यात्व'दर्शन मोह-विपरीत श्रद्धान. १४. 'अज्ञान'-मूढपना १५. 'निद्रा' सोना. १८ ‘अविरति '-प्रत्याख्यान से रहितपना. १७. 'राग'-पूर्व सुखो का स्मरण और पूर्व सुख व तिसके साधन में गृद्धिपना. १८. 'द्वेष ' पूर्वदुःखो का स्मरण और पूर्वदुःख वा तिस के साधन विषय क्रोध । यह अढारह दूषण जिन में नही सो अर्हन्त भगवन्त परमेश्वर है । इन अठारह दूषण में से एक भी दूषण जिम में होगा सो कभी भी अहंत भगवत परमेश्वर नहीं हो सकता।
अठारह दोषो की मीमासा :
प्रश्न : दानान्तराय के नष्ट होने से क्या परमेश्वर दान देता है ? अरु लाभान्तराय के नप्ट होने से क्या परमेश्वर को भी लाभ होता है ?
२ दाता उदार हो दान को वस्तु उपस्थित हो याचना में कुशलता हो तो भी जिस कर्म के उदय से याचक को लाभ न हो सके वह लाभान्तराय हैं। अथवा योग्य सामग्री के रहते हुवे भी जिस कर्म उदय से जोव को अभीष्ट वस्तु की प्राप्ति नही होती, उसको 'लाभान्तराय' कहते है।
३. वीर्य का अर्थ सामर्थ्य है । बलवान हो, नीरोग हो और युवा भी हो तथापि जिस कर्म उदय से जीव एक तृणको भी टेढा न कर सके वह · वीर्यान्तराय' है।
४. भोग के साधन मौजूद हो, वैराग्य भी न हो, तो भी जिस कर्म के उदय से जीव भोग्य वस्तुमओ को भोग न सके वह 'भोगान्तराय' है।
५ उपमोग की सामग्री मौजूद हो, विरतिरहित हो तथापि जिस फर्म के उदय से जीव उपभोग्य पदार्थों का उपभोग न कर सके वह 'उपभोगान्तराय' है।