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इस कारण ते रागद्वेषवाला अर्हन्त भगवन्त परमेश्वर नही । ए पूर्वोक्त अठारह दूषण रहित अर्हन्त भगवन्त परमेश्वर है, अपर कोई परमेश्वर नही ।
x अष्टादश दोष कर्मजन्य है, अत: जिस आत्मा में यह दोष उपलब्ध होगे उम मे कर्ममल अवश्य ही विद्यमान होगा। और कर्ममल से जो आत्मा लिप्त है वह जीव अथवा सामान्य आत्मा है, परमात्मा नहीं। क्यो कि कर्ममल से सर्वथा रहित होना ही परमात्मा की प्राप्ति अथवा मात्मा का सपूर्ण विकास है। इस लिये जो आत्मा कर्ममल से सर्वथा रहित हो गया है परमात्मा है और उसमें यह दोष कमी नहीं रह सकते। अतः सामान्य मात्मा और परमात्मा की परीक्षा के लिए उक्त दोपो फा
जानना अत्यत आव