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शांतिनाथ स्तुति चार. शांति मळे नहीं लक्ष्मीथी नहीं राज्यना जोगे, शांति मळे नहीं कामथी बाह्य सत्ता प्रयोगे: शांति न राग द्वेषयी सहु विषयने वामे; शांति जिनेश्वर नाखता शांति आतम गमे. १ शांति न क्रोधने मानथी तेम मायाने लोभे; शांति न शास्त्राभ्यासथी जम्मा मन थोले, शांति न बाह्य पदार्थथी हुँ ने मारूं माने; सर्व जिनेश्वर नाखता शांति आतम स्थाने. २ संकल्शेने विकल्पथी मन शांत न थावे, अज्ञा ने मोह भावथी कोइ शांति न पावे; नामरूप निर्मोहथी जिनवाणी जणाव, शांति आतममा खरी अनुभवथी आवे. मनने मारतां आत्ममां सत्य शांति स्वभावे, मन संसारने मुक्ति छे समजे शिव थावे; आतममा मन गरतां निजपास छे शांति; शासन देवी सहायथी रहे नहि कोइ ब्रान्ति. ४
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