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(१६) शांति स्मरंतां प्रगटे शांतताजी, सहज योगे निर्धाररे.
शांति० १ मनमा छे मोह ज तावत् दुःख छ जो, मोह टळ्याथी साची शांतिरे; तमने रजथी नहीं शांति आत्मनीजी, सालिक शांति छेवटे शांतिरे. शांति० २ देहने मनमां शांति नहीं खरीजी, शांति न बाहिर भोगे थायरे; यावत् मनमां संकल्पो जागताजी, तावत् न शांति सत्य सुहायरे. शांति० ३ शांति अनुजव आवे समपणेजी, उपशम आदि क्षायिक भावरे; सहज स्वनावे विकल्पो टळेजी, शांति अनंती आतम दावरे. शांति०४ द्रव्ये ने नावथी शांति पामवाजी, ज्ञाने लगावो आतमतान रे; शांति प्रभुमय आतम थे रहेजी, बुद्धिसागर नागवानो
शांति०५
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