Book Title: Dev Vandana Stuti Stavan Sangrah
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 162
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३७ ) शुद्धं आत्मस्वरूप बतावी, मिथ्या प्रमणा हावेरे; अस्ति नास्तिमयधर्म अनन्ता, द्रव्य द्रव्यमां भावेरे. चार निक्षेपे चार प्रमाणे, वस्तु स्वरूपने दाखेरे; द्रव्य क्षेत्र ने काल जावथी, वस्तु स्वरूपने भाखेरे. नन्दकारी जग हितकारी, गुण पर्यायाधारोरे; उत्पत्ति-व्यय- ध्रुवतामयी प्रभु, शाश्वतपद सुखकारीरे. जिनस्वरूप यह जिनवर सेवी, लहीए अनुभव मेवारे; बुद्धिसागर ज्ञान दिवाकर, सहज योग पदसंवारे. For Private And Personal Use Only कुंथु० ४ कुंथु० ५ कुंथु० ६ कुंथु० ७

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