Book Title: Dev Vandana Stuti Stavan Sangrah
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 165
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४०) त्रिभुवन मुकुट शिरोमणि, परम महोदय धर्मरे; जगगुरु परमबंधु विभु, सादि-अनन्त सुशर्मरे. मति ५ अलख अगोचर दिनमणि, अविचल पुरुष पुराणरे; सत्य एक देव ! तुं जगधणी, धार हुँ शिर तुज आणरे. मद्वि ६ मबिजिन शुद्ध आलंबने, सेवक जिनपणुं पायरे; बुद्धिसागर रस रंगमां, जेटिया चिद्घनरायरे. मल्लिा ७ ____ २० मुनिसुव्रतस्तवन. (तार हो तार प्रभु ! मुज सेवक भणी-ए राग.) तार हो तार प्रभु ! शुद्ध दिनकर विभु, शरण तुं एक छे मुज स्वामी; ज्ञान-दर्शनधणी, सुख ऋद्धि घणी, नामी पण वस्तुतः तुं अनामी. तार०१ For Private And Personal Use Only

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