Book Title: Dev Vandana Stuti Stavan Sangrah
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 163
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३८) १८ अरनाथस्तवन. (तुम बहु मंत्रीरे साहिबा-ए राग.) अराजिनवर ! प्रभु ! वन्दना, होजो वारंवार; क्षायिक-रत्नत्रयी वर्यो, शुद्ध बुद्धावतार. अर. १ अष्टकर्मना नाशथी, अष्ट गुणोने धरंत; गुण एकत्रोशने तें धर्या, साध्य सिद्धि वरंत. अर. २ क्षपकश्रेणि-रणक्षेत्रमां, हण्यो मोह प्रचंड; त्रिभुवनमा साम्राज्यनी, चलव। आण अखंड. अर. ३ घातिकर्म-प्रकृति हरी, पाम्या केवलज्ञान: पुरुषोत्तम अरिहाप्रभु, दोधुं देशना दान. अर. ४ योगविकार शमावीने, शेष कर्म जे चार; हणीने शिवपुर पा मिया, धन्य!धन्य!अवतार.अर.५ तुज पाले अमे चालशुं, पामीने परमार्थ; अनुभव रंगे भेटोने, प्रभु थइशुं सनाथ. अर. ६ प्रेम भक्ति उत्साहमां, श्रुतज्ञाने दिल लाय; बुद्धिसागर ध्यानमां, प्रभुता घटमांहि पाय. अर. ७ For Private And Personal Use Only

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