Book Title: Dev Vandana Stuti Stavan Sangrah
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 152
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२७) ज्ञानादर्श प्रभु घट लावू, श्रेयांस.४ प्रभु ! दर्शन देजो शिवरसिया, प्रभु प्रेमे म्हारा दिल वसिया, स्थिरउपयोगे जिन उल्लसिया, श्रेयांस. ५ प्रभु ! परममहोदय पद आपो, प्रभु ! जिनपदमां मुजने थापो. कर्या कर्म अनादि सह कापो. श्रेयांस.६ प्रभु ! उपादान योगे आवो, नक्तिथी निज गुण विरचावो, बुद्धिसागर मळियो ल्हावो. श्रेयांस. ७ १२ वासुपूज्यस्तवन. (गिमारे गुण तुमतणा-ए राग.) वासुपूज्य ! त्रिभुवनधणी, परमान्दविलासीरे; अकळकळा निर्भय प्रभु, ध्याने नासे उदासीरे. जगजीवन जगनाथ छो, परमब्रह्म महादेवारे, पान नास उदासार. वासप्रज्य. १ For Private And Personal Use Only

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