Book Title: Dev Vandana Stuti Stavan Sangrah
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 158
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १३३ ) १५ धर्मनाथस्तवन. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( धर्मजिनेश्वर गाउं रंगशुं - ए राग ) धर्मजिनेश्वर बंदु भावथी, वस्तुधर्मदार; जगत्मां. वस्तुस्वभाव ते धर्म जणावता, षड्द्रव्योमांहि सार. जगत्मां. १ ज्ञेय देय देय जणावता, सकल द्रव्य छेरे ज्ञेय; जगत्मां. उपादेय चेतननो धर्म छे, पुद्गलच्या दिरे हेय. भावकर्म ते राग द्वेष छे, काल अनादिथी जाण; जगत्मां. द्रव्यकर्मनुं कारण तेह छे, नोकर्म निमित्त याण. अशुद्धपरिणतियोगे बंध छे, शुद्धपरिणतिथी मुक्ति; जगत्मां. अन्तरचेतनसन्मुख योगथी, शुद्ध उपयोगनी युक्ति. जगत्मां. २ जगत्मां. ३ जगत्मां. ४ For Private And Personal Use Only

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