Book Title: Dev Vandana Stuti Stavan Sangrah
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 156
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३१) १४ अनंतनाथस्तवन. (शांतिजिन ! एक मुज-ए राग.) अनन्त जिनेश्वर नाथने, वन्दतां पाप पलायरे; रवि आगळ तम शुं ? रहे, प्रनु नजे माह विलायरे. अनन्त ? अनन्त गुणपर्यायपात्र तुं, व्यक्ति एवंचूत साररे; संग्रहनय परिपूर्णता, ध्याता ते व्यक्तिथी धाररे. अनन्त. २ उपशम नाव क्षयोपशमथी, साध्यनी सिद्धि करायरे; धर्म निज वस्तुस्वभावमां, स्थिर उपयोग सुहायरे. अनन्त. ३ ज्ञानदर्शनचरण-गुण विना, व्यवहार कुलआचाररे; साध्यलक्ष्ये शुद्ध चेतना, जाणवो शुद्धव्यवहाररे. अनन्त. ४ For Private And Personal Use Only

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