Book Title: Dev Vandana Stuti Stavan Sangrah
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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( १२८ )
व्यापक ज्ञानथी विष्णु छो, सुरपति करे पदसेवारे. च्यादि - अनन्त तुं व्यक्तिथी, एवंभूतथी योगीरे; अनाद्यनन्त सत्तापणे, गुणपर्यवनो भोगी रे.
वासुपूज्य. २
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वासुपूज्य ३
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व्याप्य व्यापकता अभेदता,
ज्ञाताज्ञेय अभेदीरे; भिन्नाभिन्न स्वभाव छे,
वेदरहित पण वेदीरे. परम महोदय चिन्मणि, अजरामर अविनाशीरे: नित्य निरंजन सुरमयी, व्यक्तिशुद्ध प्रकाशोरे.
निरक्षर अक्षर विभु, जगबंधव जगत्रातारे, कायिक नवलब्धिधणी,
वासुपूज्य. 2
वासुपूज्य. ५
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