Book Title: Dev Vandana Stuti Stavan Sangrah
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 153
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १२८ ) व्यापक ज्ञानथी विष्णु छो, सुरपति करे पदसेवारे. च्यादि - अनन्त तुं व्यक्तिथी, एवंभूतथी योगीरे; अनाद्यनन्त सत्तापणे, गुणपर्यवनो भोगी रे. वासुपूज्य. २ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वासुपूज्य ३ @ व्याप्य व्यापकता अभेदता, ज्ञाताज्ञेय अभेदीरे; भिन्नाभिन्न स्वभाव छे, वेदरहित पण वेदीरे. परम महोदय चिन्मणि, अजरामर अविनाशीरे: नित्य निरंजन सुरमयी, व्यक्तिशुद्ध प्रकाशोरे. निरक्षर अक्षर विभु, जगबंधव जगत्रातारे, कायिक नवलब्धिधणी, वासुपूज्य. 2 वासुपूज्य. ५ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178