Book Title: Dev Vandana Stuti Stavan Sangrah
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 150
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२५ ) जेम प्रभुना दर्शनमां स्थिरता थती, तेम प्रभुजी यानन्द व्यापे बेशजो; आनन्ददाता- भोक्कानी थइ एकता, चढी खुमारी यादी आपे हमेशजो. प्रीतलडो. ३ आत्माऽसंख्य प्रदेशे शीतलता खरी, अवधूत योगी प्रगटावे सुखकंदजो; औदकिभाव निवारी उपशमआदिथी; टाळे सघळा मोहतणा महाफंदजो. प्रीतलदी. १ गुणस्थानक - निःसरणि चढतो आतमा, उज्ज्वल योगे पामे शिवपुर म्हेलजो; क्षायिकनावे सुख अनंतुं भोगवे, निजपदमुक्ता धारी करतो स्हेलजो. प्रीतलड). ५ बाह्य - भावनी सर्व उपाधि नासतां, प्रभु विरहनो नाश थशे निर्धारजो; अनुजवयोगे रंगायो जिनरुपमां, याशुं प्रभुसमा अन्ते जयकारजो. प्रीतलडी. ६ निजगुण स्थिरतामां रंगावुं सहजथी, वस्तुधर्म- ज्ञानादिक तुं आधारजो; For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178