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__ (३१) धन्य जैन ले जे मरजीवो प्रभु वचनामृत पीवो जैन धर्म सम कोइ न धर्म बीजा सर्वे बंमो नर्म जेथी पामो साचुं शर्म अधिकारे करो कर्म, जैनी थै कर्मोने करवां महाजननां कर्मो अनुसरवां अनासक्तिए होय न परवा, मिथ्या व्हेमो हरवा एबुं जिननी वाणी प्रकाशे मोह रहे नहीं तेनी पासे कार्य करे पण फळ नहीं वांछे स्वयं प्रभु ए विलासे. द्रव्यभाव सहु शक्ति प्रकाशो बनो न आसक्तिना दासो जीवन मंत्रोनो विश्वासो धारी प्रन्नु थै जाशो
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