Book Title: Dev Vandana Stuti Stavan Sangrah
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 126
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १०१ ) संकेत करवा प्यारीने, प्राणपति ! अहिं आव्या; हरिणदयाथी बहु दया, प्रभु ! मुज पर लाव्या. १२ भवनां लग्न निवारवा, जान मुक्तिथी याणी; खे आंख मिलावीने, मने मुक्तिमां ताणी. भोळी समजी नहीं, साची जगमां अबळा; नाथे नेह निजावियो, धन्य स्वामी सबळा. जोगावलीना जोरथी, गृहवासमा फसिया; ऋषजादिकतीर्थंकरा, ललनासंग रसिया, भोगावलीना अजावी, मारो संग न कीधो; ब्रह्मचारी मारा स्वामिजी, जश जगमां लोधो. स्त्रीने चेतावा आविया, स्वामी उपकारी; आठ जवानी प्रीतडी, पूरी पाळी सारी. हाथोहाथ न मेळव्यो, स्वामी गुणरागी; स्वामीना ए कृत्यथी, हुं थइ वैरागी. त्रिज्ञानीना कार्यमां, कांइ यावे न खामी; राजुल वैरागण बनी, शुद्ध-चेतना पामी, For Private And Personal Use Only १३. १४ १५ १६. १७ દ १९

Loading...

Page Navigation
1 ... 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178