Book Title: Dev Vandana Stuti Stavan Sangrah
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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(११० ) ज्ञानवरणीयादिक हणीरे, क्षायिक नवगुण-जोग. जिनवर. २ अष्टकर्मना नाशथोरे, गुण-अष्टक प्रगटाय; जिनवर. एक समय समश्रेणिएरे, मुक्तिस्थान सुहाय. जिनवर. ३ नात्यंताजाव मुक्तिनोरे. जडिममयी नहि खास; जिनवर. व्योमपरे नहि व्यापिनोरे, नहि व्यावृत्ति-विलास. जिनवर. ४ सादि अनंत स्थितिथीरे, सिद्ध बुद्ध भगवंत;
जिनवर. झळहळ ज्योति ज्यां जगमगेरे, शेयतणो नहि अंत. जिनवर. ५ परज्ञेय ध्रुवता त्रिकालमारे, उत्पत्ति-व्ययसाथ; जिनवर. निजज्ञेय भ्राता अनन्तनोरे, पर्यायसह शिवनाथ. जिनवर. ६
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