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(१५)
धर्मनाथ स्तुति. धर्म प्रभु कहे आत्मनो धर्म गुण पर्यायो, समजे वर्ते सहजथी तेह धर्मी सुहायो; धर्मनाथ निज आतमा करे आविर्नावे; अज्ञानी धर्म पन्थ सहु टळे आत्म स्वभावे. १
शांतिनाथ चैत्यवंदन. दर्शन ज्ञान चारित्रथी साची शांति थावे; शांतिनाथ शांतिवर्या रत्नत्रयी स्वभावे. १ तिरोभाव निज शांतिनो आविर्नाव जे थाय; शुद्धातम शांति प्रभु स्वयं मुक्तिपद पाय. ५ बाह्य शांतिनो अंत २ ए आतम शांति अनंत; अनुलवे जे आत्ममा प्रभुपद पामे संत.
॥ शांतिनाथ स्तवन ॥ समक्ति द्वार गनारे पेसतांजी-ए राग. शांति जिनेश्वर परमेश्वर विभुजी, गातां ने ध्यातां हर्ष अपाररे;
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