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बदल दिया इतिहास मुनिपुंगव सुधासागर अन्तर्यामी। रागी नही हूँ नही हूँ द्वेषी चन्दाप्रभु अन्तर्यामी॥ सोमासती ने आपको ध्याय नाग का हार बनाया।
मुनि समन्तभद्र ने ध्याया पिंडी फटी दर्श, तुम पाया। सम्यग्दर्शन छूटे न मेरा तेरे दर पर यही भावना भाता हूँ। अंजन चोर को तार दिया श्रद्धा सहित तव चरण में आया हूँ ।।
भारत भर में गूँज गई है त्व यश की अक्षय - भेरी ।
देश-देश के यात्री आकर जय-जयकार करें तेरी ||
ऊँ ह्रीं चांदखेड़ी के बन्द-तल - प्रकोष्ठ में विराजमान यक्ष-रक्षित चंदाप्रभुजिनेन्द्राय जयमाला - महार्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा | 9 |
चांदखेड़ी के चन्दाप्रभु को भाव सहित जो ध्यावें । सुख सम्पत्ति अरु कीर्ति कुसुम रूप मन वांछित पावें ।।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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